कहानियाँ

पंचतंत्र की कहानी

संगीतमय गधा

PKOct23

बहुत समय पहले की बात है, किसी गांव में एक धोबी रहा करता था. उसके पास एक गधा था, जिसका नाम मोती था. चूंकि, धोबी स्वाभाव से बहुत ही कंजूस था, इसलिए वह अपने गधे को जान बूझकर चारा पानी नहीं देता था और उसे चरने के लिए बाहर भेज दिया करता था. इस कारण गधा बहुत ही कमजोर हो गया था. जब एक दिन धोबी ने उसे घास चरने के लिए छोड़ा, तो वह चरते-चरते कहीं दूर जंगल में निकल गया. जंगल में उसकी मुलाकात एक गीदड़ से हुई.

गीदड़ ने पूछा, 'गधे भाई तुम इतने कमजोर क्यों हो?' तो गधे ने जवाब दिया, 'मुझसे दिनभर काम करवाया जाता है और मुझे कुछ खाने के लिए भी नहीं दिया जाता है. यही वजह है कि मुझे इधर-उधर भटक-भटक कर अपना पेट भरना पड़ता है. इस कारण मैं बहुत कमजोर हो गया हूं.' गधे की यह बात सुनकर गीदड़ कहता है, 'मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं, जिससे तुम बहुत ही स्वस्थ और शक्तिशाली हो जाओगे.'

गीदड़ कहता है, 'यहां पास में ही एक बहुत बड़ा बाग है. उस बाग में हरी-भरी सब्जियां और फल लगे हुए हैं. मैंने उस बाग में जाने का एक खुफिया रास्ता बना रखा है, जिससे मैं रोज रात को जाकर बाग में हरी-भरी सब्जियां और फल खाता हूं. यही वजह है कि मैं एकदम तंदुरुस्त हूं.' गीदड़ की बात सुनते ही गधा उसके साथ हो लेता है. फिर गीदड़ और गधा दोनों ही साथ मिलकर बाग की ओर चल देते हैं.

बाग में पहुंच कर गधे की आंखे चमक उठती हैं. इतने सारे फल और सब्जियां देखकर गधा अपने आप को रोक नहीं पाता है और बिना देर किए वह अपनी भूख मिटाने के लिए रसीले फल और सब्जियों का आनंद लेने लगता है. गीदड़ और गधा जी भर के खाने के बाद उसी बाग में सो जाते हैं.

अगले दिन सूरज निकलने से पहले गीदड़ उठ जाता है और फौरन बाग से निकलने को कहता है. गधा बिना सवाल किए गीदड़ की बात मान लेता है और दोनों वहां से रवाना हो जाते हैं.

फिर वो दोनों रोज मिलते और इसी तरह बाग में जाकर हरी-भरी सब्जियां और फल खाते. धीरे-धीरे समय बीतता गया और गधा तंदुरस्त हो गया. रोज भर पेट खाना खाकर अब गधे के बाल चमकने लगे थे और उसकी चाल में भी सुधार हो गया था. एक दिन गधा खूब खाकर मस्त हो गया और जमीन पर लोटने लगा. तभी गीदड़ ने पूछा, 'गधे भाई तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?' तो गधा कहता है, 'आज मैं बहुत खुश हूं और मेरा गाना गाने का मन कर रहा है.'

गधे की यह बात सुनकर गीदड़ घबराया और बोला, 'न गधे भाई, यह काम भूलकर भी मत करना. भूलो मत हम चोरी कर रहे हैं. कहीं बाग के मालिक ने तुम्हारा बेसुरा गाना सुन लिया और यहां आ गया, तो बड़ी मुसीबत हो जाएगी. भाई इस गाने-वाने के चक्कर में मत पड़ो.'

गीदड़ की यह बात सुनकर गधा बोला, 'तुम क्या जानो गाने के बारे में. हम गधे तो खानदानी गायक हैं. हमारा ढेंचू राग तो लोग बड़े शौक से सुनते हैं. आज मेरा गाने का बहुत मन है, इसलिए मैं तो गाऊंगा.'

गीदड़ समझ जाता है कि गधे को गाने से रोक पाना अब बहुत मुश्किल है. गीदड़ को अपनी गलती का आभास हो जाता है. गीदड़ बोला, 'गधे भाई तुम सही कह रहे हो, गाने-वाने के बारे में हम क्या जाने. अब तुम बता रहे हो, तो मुमकिन है कि तुम्हारी सुरीली आवाज सुनकर बाग का मालिक फूल माला लेकर तुम्हें पहनाने जरूर आएगा.' गीदड़ की बात सुनकर गधा खुशी से गद-गद हो जाता है. गधा कहता है, 'ठीक है, फिर मैं अपना गाना शुरू करता हूं.'

तभी गीदड़ कहता है, 'मैं तुम्हें फूल माला पहना सकूं, इसलिए तुम अपना गाना मेरे जाने के 15 मिनट बाद शुरू करना. इससे मैं तुम्हारा गाना खत्म होने से पहले यहां वापस आ जाऊंगा.'

गीदड़ की यह बात सुनकर गधा और भी ज्यादा फूला नहीं समाता है और कहता है, 'जाओ भाई गीदड़ मेरे सम्मान के लिए फूल माला लेकर आओ. मैं तुम्हारे जाने के 15 मिनट बाद ही गाना शुरू करूंगा.' गधे के इतना कहते ही गीदड़ वहां से नौ दो ग्यारह हो जाता है.

गीदड़ के जाने के बाद गधा अपना गाना शुरू करता है. गधे की आवाज सुनते ही बाग का मालिक लाठी लेकर वहां पहुंच जाता है. वहां गधे को देख बाग का मालिक कहता है कि अब समझ आया कि तू ही है, जो मेरे बाग को रोज चर के चला जाता है. आज मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा. इतना कहते ही बाग मालिक लाठी से गधे की खूब जमकर पिटाई करता है. बाग मालिक की पिटाई से गधा अधमरा हो जाता है और बेहोश होकर जमीन पर गिर जाता है.

कहानी से सीख : संगीतमय गधा कहानी से सीख मिलती है कि अगर कोई हमारी भलाई के लिए कुछ बात समझाता है, तो उसे मान लेना चाहिए. कभी-कभी हालात ऐसे हो जाते हैं कि दूसरों की बात न मानने से हम मुसीबत में पड़ सकते हैं.

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तीन दोस्त

रचनाकार- कु.माही नाग, कक्षा-चौथी, शा.प्रा.शा. माहरापारा भैरमगढ़, जिला- बीजापुर

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एक समय की बात है तीन दोस्त थे.एक का नाम चांद, दूसरे का नाम सूरज व तीसरे का नाम पृथ्वी था.एक दिन तीनों दोस्त घूमने जा रहे थे.रास्ते में उन्हें एक नदी मिला.नदी के किनारे एक बंदर बैठा था और वह रो रहा था.तीनों ने उसे देखकर पूछा कि बंदर भाई आप क्यों रो रहे हो? बंदर ने आंसू पोछते हुए कहा कि मेरी बेटी खो गई है, क्या आप लोग उसको ढूंढने में मेरी मदद करोगे? तब उसकी बात सुनकर तीनों दोस्तो ने कहा -हां जरूर !फिर सभी उसको ढूंढने गए.

ढूंढते-ढूंढते रात हो गई.तभी उन्हें रास्ते में एक झोपड़ी मिला.वहां पर एक छोटा सा बंदर खेल रहा था.जिसे देखकर चांद ने कहा कि वहां देखो क्या वह तुम्हारी बेटी है? तभी बंदर ने उस ओर देखा और कहा कि नहीं यह मेरी बेटी नहीं है. मेरी बेटी के नाक पर तो लाल निशान हैं.

फिर वे सभी आगे बढ़ गए चलते-चलते सुबह हो गई. तभी पृथ्वी ने कहा कि नदी के किनारे छह किले का पेड़ है कहीं वहां पर तो नहीं होगी? तब सूरज ने कहा चलो चलकर देखते हैं.सभी वहां पहुंचकर देखते हैं कि एक छोटी सी बंदर जिसके नाक पर लाल निशान था वह मजे से केले खा रही थी. तब बंदर ने खुश होकर कहा- हां यही मेरी बेटी है. उसकी बात सुनकर सभी खुश हो गये और ख़ुशी-खुशी उनकी बेटी के साथ सेल्फी लिए और वापस घर आ गए.

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The Cat

रचनाकार- Tikeshwar Sinha 'Gabdiwala'

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Once there was a cat lived in the jungle. She went to a village wandering aimlessly a day. As she entered into a house opened. Then she saw the hot milk put in a clay pot on the wooden stove. The fragrance of milk hit her nose. She became very happy. After being cold she sipped the milk much. Then after that day she would get the milk somewhere else daily. Really she was so glad.

Then she thought that the food and water were got easily there to her. She gave up the idea of going back to the jungle.

From that day the cat began living in the village areas.

Dear Children ! And so the cat is living in the villages today. She likes very much the village.

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समुद्र

रचनाकार- पुष्पेंद्र कुमार कश्यप, सक्ती

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बहुत पुरानी बात है, एक गाँव में दो भाई रहते थे. दोनों भाइयों में बहुत प्रेम था, वे सुखमय जीवन बिता रहे थे. एक बार बड़े भाई को आवश्यक कार्य से रात्रि के समय दूसरे गाँव जाना पड़ा.रास्ते में उसकी मुलाकात एक साधू से हुई. साधू ने कहा- यदि तुमने मेरे प्रश्नों के सही उत्तर (जवाब) दिए ,तो मैं तुम्हें एक जनोपयोगी पुरस्कार दूँगा. बड़े भाई ने साधू महाराज के प्रश्नों के उत्तर बड़ी सहजता एवं विनम्रता से दी। साधू ने प्रसन्न होकर उसे एक जादुई बर्तन (पात्र) दिया, जो अपने मालिक की सारी इच्छाएं पूरी करता था. बर्तन से अपनी इच्छित वस्तुएं प्राप्त करने तथा वस्तु प्राप्ति के बाद उसे रोकने के लिए साधू ने कुछ मंत्र बताए, साथ ही इस मंत्र का आवाहन किसी भी अन्य व्यक्ति के सम्मुख करने से मना किया.

जादुई बर्तन पाने के बाद बड़ा भाई बहुत सुख से रहने लगा, तथा यदा-कदा अपने छोटे भाई को भी भोज में आमंत्रित किया करता. छोटा भाई अपने बड़े भाई के रहन-सहन व ठाट-बाट को देखकर उससे ईर्ष्या करने लगा तथा इसका भेद जानने के लिए रातों में जागकर भाई की निगरानी करने लगा। एक रात उसने बड़े भाई को मंत्र बोलकर बर्तन से कुछ सामान माँगते देखा ,बर्तन ने तत्काल उन सभी वस्तुओं को उपलब्ध करा दिया. छोटे भाई की आँखें फटी की फटी रह गई, उन्होंने उस मंत्र को याद कर लिया परंतु बर्तन से सामान निकालना बंद करने के मंत्र को जाने बिना वह घर की ओर चल दिया. एक दिन मौका पाते ही छोटा भाई उस बर्तन की चोरी कर एक नाव में सवार होकर समुद्र के रास्ते अन्य देश के लिए भाग निकला.

छोटा भाई ने मंत्र बोलकर जादुई बर्तन से जो भी माँगा, उसने सब दिया, भूख लगने पर उन्होंने भोजन की मांग की. जादुई बर्तन ने लज़ीज व्यंजनों की थाली उसके सामने रख दी, बर्तन से सामान निकलना निरंतर जारी रहा. जब उसने खाना शुरू किया तो उसे भोजन में नमक फीका लगा. उसने बर्तन से नमक की मांग की, बर्तन से नमक निकलना शुरू हुआ और निकलता ही रहा. चूँकि छोटा भाई को बंद करने का मंत्र मालूम नहीं था इसलिए बर्तन से नमक निकलता ही रहा.

नाव में नमक भर गया और नमक के भार से नाव समुद्र में डूब गया, साथ ही छोटा भाई भी समुद्र में डूबकर मर गया. लोग कहते हैं कि उस बर्तन से आज भी नमक निकल रहा है, जिसके कारण समुद्र का पानी खारा (नमकीन) है.

शिक्षा- हमें दूसरों की संपत्ति पर लालच नहीं करनी चाहिए.

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एकता में बल

रचनाकार- वेद प्रकाश दिवाकर

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बहुत पहले की बात है, जब चारों ओर जंगल ही जंगल थे और जंगल में शेर का एकछत्र राज था. शेर राजा होने के साथ - साथ बहुत शक्तिशाली भी था. जंगल के सभी जानवर उससे भयभीत रहते थे क्योंकि शेर जब चाहे किसी को भी मार गिराता था. वह शिकार न केवल पेट भरने के लिए करता अपितु शौकिया तौर पर भी करता था. इससे जंगल में आतंक फैला हुआ था. सभी जीव-जंतु हमेशा भयभीत रहते थे. तब जंगल के अन्य सभी जानवरों ने मिलकर विचार विमर्श किया कि यदि शेर इसी तरह से अपनी शौक के लिए शिकार करता रहा तो हम सब जल्दी ही मारे जायेंगे और हमारा जंगल शीघ्र ही नष्ट हो जायेगा. इसलिए शेर को भी अपनी उदरपूर्ति हेतु ही शिकार करना चाहिए. यह निर्णय लेकर सभी जानवरों ने शेर को यह फैसला सुना दिया. लेकिन शेर अपनी ताकत के घमंड से चूर होकर नहीं माना. इस पर सभी जानवरों ने मिलकर शेर को सबक सिखाने की युक्ति निकाली कि अब जब भी शेर शिकार करने जायेगा तो तुरंत उसकी सूचना सब को दे दी जाए और फिर ऐसा ही हुआ. जब भी शेर शिकार करने वाला होता, पूरे जंगल के जीवों को तत्काल सूचना दे दी जाती और वे सब छुप जाते या वहाँ से भाग जाते. शेर को कोई शिकार मिलता ही नहीं था, उसके भूखों मरने की नौबत आ गई. अंत में थक हार कर शेर ने जंगल के सभी जानवरों से माफ़ी मांगी और कहा कि अब के बाद मैं सिर्फ भोजन के लिए ही शिकार करूँगा. तब से लेकर आज तक शेर केवल खाने के लिए ही शिकार करने लगा. इस प्रकार जानवरों की एकता के बल पर जंगल में फिर से खुशहाली लौट आई.

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परिश्रम का फल

रचनाकार- सष्टि प्रजापति, कक्षा-आठवी, स्वामी आत्मानंद तारबहार बिलासपुर छ:ग

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एक समय की बात है. दो मित्र हुआ करते थे. उसमे से एक बहुत आलसी था. न ही वह पढाई करना चाहता था और न ही किसी भी कार्य को करने मे रूचि दिखाता. बस सदा खाने, खेलने, और सोने में उसका ध्यान रहता. दूसरा बड़ा परिश्रमी था वह पढाई में भी अव्वल था. और बडा जिज्ञासु था.

एक दिन दोनों मित्र बैठकर चर्चा कर रहे थे. तभी उस आलसी मित्र ने कहा - एक ही तो जिंदगी है, आराम से हँसते-खेलते, मौज-मस्ती करते बिताएँगे. अभी से क्यो इतना परिश्रम करना. फिर आगे चलकर हमें ही तो अपने परिवार को सँभालना है.

उसकी बात सुनकर दुसरा मित्र समझाते हुए बोला- पता है! एक ही ज़िन्दगी है. यह समय अमूल्य है. इस जीवन का हमें सही उपयोग करना चाहिए ताकि जब हम इस दुनिया में न हों तब हमारा नाम और हमारे द्वारा किये गये काम से हमारी याद हो. इसलिए क्यों न हम एक लक्ष्य निर्धारित कर ले जो हमारे परिवार,समाज और देश सभी के लिए सही हो. फिर हमें उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए परिश्रम करना होगा. और जब उस परिश्रम के फल से हमें हमारा लक्ष्य मिल जायेगा उस दिन हमारी एक पहचान होगी. हमारे पास वो सब कुछ होगा जिसकी पहले हम सिर्फ कल्पना किया करते थे.

जिस प्रकार एक-एक ईंट जोडकर परिश्रम से एक महल बनता है. ठीक इसी

प्रकार परिश्रम के छोटे-छोटे कदम से हम अपने लक्ष्य के पास आकर उसे पा लेते हैं.

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बादल फटते क्यूँ हैं

रचनाकार- सावित्री शर्मा' सवि ', उत्तराखंड

baadal

रजत के पापा टी वी पर तन्मय होकर समाचार सुन रहे थे कि उन्होंने रजत की मम्मी को आवाज़ दी,

' मीनू जल्दी से मेरा फ़ोन लाना,उत्तरकाशी के पास धरासू में बादल फटने की खबर आई है.घर पर फ़ोन कर लेते है,सब ठीक तो है '

रजत की मम्मी ने जल्दी से फ़ोन लाकर दिया,

वही पास में छे सात साल का रजत कलर बुक में कलर कर रहा था.उसका ध्यान अपने पापा की बात पर गया.उसने बाल सुलभ जिज्ञासा से पूँछा,

'पापा बादल फटना क्या होता है ?'

' बेटा तुमने बहुत अच्छा सवाल किया है.आओ यहाँ आकर मेरे पास बैठो.मैं तुमको विस्तार से बताता हूँ '

रजत पास आकर पापा के पास वाली कुर्सी पर बैठ गया.

'लीजिए मैं आ गया, अब बताइए पापा'

पापा ने रजत को समझाना शुरू किया.

' बेटा बादल फटना एक तकनीकी शब्द है.जिसका प्रयोग मौसम वैज्ञानिक करते हैं.इसका मतलब है अचानक से एक जगह बहुत सारी बारिश होना.IMD के अनुसार अगर एक जगह पर एक घंटे में 100 MM बारिश होती है तो इस प्रक्रिया को बादल फटना कहते हैं.ये ठीक उसी तरह होता है जैसे पानी का ग़ुब्बारा फूट जाए तो अचानक से सारा पानी एक जगह गिर जाएगा.इस घटना को क्लाउड बस्ट कहते हैं.

' पर पापा ये फटते क्यूँ है बादल?'

'अच्छा लग रहा है तुम सवाल पूँछ रहे हो,सवाल करने से नई जानकारी मिलती है,कोई भी प्रश्न मन में आए पूछना अवश्य चाहिए,तो सुनो,अभी मैंने बताया की बादल फटना किसे कहते हैं.अब ये होता क्यूँ है ?ये भी समझो.जब एक जगह बहुत ज़्यादा नमी वाले बादल एक ही जगह इकट्ठा हो जाते हैं तो वहाँ मौजूद पानी की बूँदें आपस में मिलती है इसके भार से बहुत तेज़ बारिश शुरू हो जाती है ज़्यादातर ये घटनाएँ पहाड़ों पर घटती हैं.इसका कारण है कि पानी से भरे बादलहवा के साथ उड़ते हैं ऐसे में कई बार वो पहाड़ों के बीच फँस जाते हैं और ये बादल पानी में परिवर्तित हो जाते हैं तथा एक ही जगह बरसने लगते हैं.इस कारण तेज बारिश शुरू हो जातीं है.बादल फटना बारिश का चरम रूप है.इस घटना में बारिश के साथ कभी कभी गरज के साथ ओले भी पड़ते हैं.

सामान्यतया बादल फटने के कारण सिर्फ़ कुछ मिनट तक मूसलाधार बारिश होती है.

' पापा इसे कितना अजीब लगता होगा ना इतनी बारिश का एक साथ होना '

' हाँ बेटा,ऐसी बारिश से कभी कभी बाढ़ की सी स्थिति उत्पन्न हो जाती है.ये प्रक्रिया पृथ्वी से अमूमन पंद्रह किलोमीटर की ऊँचाई पर घटती है '

' पापा ये मैदानी इलाक़ों में बादल ज़्यादा फटते हैं या पहाड़ी इलाक़ों में ज़्यादा होती है ?'

'बेटा, पहाड़ी इलाक़ों में में ज़्यादा असर होता है क्यूँ की बादल काफ़ी मात्रा में पानी आसमान में लेकर चलते हैं.जब उनके रास्ते में कोई बड़ी बाधा आती है तब उनसे टकराकर ये अचानक फट जाते हैं '

आज पापा से नई जानकारी लेकर रजत बहुत ख़ुश था.सोच रहा था कल स्कूल जाकर अपने दोस्तों को बताएगा.

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अपना पराया

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू', गरियाबंद

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अभी तक खेत से माँ-बाबूजी दोनों नहीं आये हैं. कम से कम माँ को तो आ ही जाना चाहिए था. पता नहीं, इतनी बारिश में वे दोनों कहाँ होंगे. घर से बार-बार निकल कर सुमन राधे और गौरी की राह ताक रही थी.

शाम का समय था. घड़ी की सुइयाँ पाँच बजने का इशारा कर रही थी. चूँकि बारिश का मौसम था; सो घटाटोप अंधेरा छाने लगा था. तरह–तरह के कीट–पतंगे व झींगुर की आवाज सुमन के कानों को छू रही थी. सुमन बहुत डरी हुई थी आज. कई तरह की शंकाएँ सुमन को घेरती जा रही थी- 'पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ था; पता नहीं आज अचानक क्या हो गया. वे दोनों खेत से जल्दी आ जाया करते थे.'

सुमन के दिलो-दिमाग में बड़ा विचलन था. उसका किसी कार्य में मन ही नहीं लग रहा था. देखते ही देखते गरजना शुरू हो गया. बिजली भी चमकने लगी. तभी उसे कुछ दिन पहले गाँव में हुई एक घटना याद आने लगी. वह सहम गयी. खेतों में काम कर रही महिलाओं के ऊपर गाज जो गिर गयी थी. सब ने दम तोड़ दिया था. बार–बार वह दृश्य आँखों के सामने झूल रहा था रहा था. अब तो सुमन की मन ही मन बात हो रही थी कि माँ–बाबू जी दोनों से मैंने कहा था कि जल्दी आना. फिर भी वे मेरी बातें नहीं सुनते.

जैसे ही सुमन घर अंदर आयी, बिजली चली गयी. जैसे–तैसे उसने मोमबत्ती जलाया. घर में रोशनी हुई. मन थोड़ा शांत लगा. सुमन घबराने लगी थी- 'हे प्रभु ! मेरे माँ–बाबू जी जल्दी घर आ जाए. मुझे बहुत घबराहट हो रही है. कहीं... कुछ...!'

थोड़ी देर बाद सुमन को राधे की आवाज सुनाई दी- 'सुमन ....! अरी ओ सुमन बिटिया ! जरा मोमबत्ती बाहर लाना तो; बहुत अँधेरा है.' सुमन के जान में जान आई. 'जी बाबू जी....' कहते हुए बाहर निकली. सुमन की आँखें माँ को ढूँढ रही थी- 'बाबू जी, माँ कहाँ है ? आप लोगों ने इतनी देर क्यों लगा दी आने में ? देखो न, बस बारिश होने ही वाली है; जल्दी आना चाहिए था ना. क्या कर रहे थे आप लोग अभी तक ?'

सुमन का तो आज सवाल पे सवाल हो रहा था. तभी पीछे से माँ की परछाई नजर आयी. सुमन मुँह बनाते हुए बोली- 'आप दोनों को तो मेरी बिल्कुल चिंता ही नहीं है.' तभी अचानक अपनी माँ गौरी को देखते ही सुमन की आँखें फटी की फटी रह गयी. उनकी गोद में एक छोटा सा घायल बछड़ा था.

सुमन चुपचाप घर के अंदर चली गयी. सुमन का गुस्सा और भी तेज हो गया था. बोलने लगी कि इतनी रात हो गयी; और आप लोग इस बछड़े को लाये. इसकी क्या जरूरत थी. मैं यहाँ परेशान हूँ. तरह–तरह के मन में ख्याल आ रहे हैं और आप लोग, बस !'

राधे और गौरी ने सुमन को शांत करते हुए पूरी घटना की जानकारी दी- 'यह बछड़ा कुछ देर पहले ही जन्म लिया था और इसकी माँ उसे छोड़ कर कहीं चली गयी थी. बछड़ा हम्मा...हम्मा... कर रहा था. इसकी मदद करने वाला कोई नहीं दिखा. तेज बारिश भी हो रही थी. बेचारा भीग रहा था. हमें लगा कि बछड़ा बेसहारा है. आधी रात को भला कहाँ जायेगा ? यदि कभी कोई तुम्हें मदद माँगे तो क्या तुम छोड़ कर आ जाओगी सुमन ? मदद नहीं करोगी ? अरे ये तो बेचारा बोल नहीं सकता , तो क्या हम इनकी भाषा भी ना समझें. हमें सब की मदद करनी चाहिए सुमन.' गौरी बोलती ही रही- 'सुमन, तुम ही बताओ. अभी थोड़ी देर पहले तुम हम दोनों के बगैर कैसे तड़प रही थी ? जबकि तुम्हें तो पता ही है कि हम आयेंगे ही; फिर भी?' अपने माँ और बाबू जी की बातें सुन सुमन ने अपनी ओर देखते उस मासूम बछड़े को गले से लगा लिया. राधे और गौरी सुमन व बछड़े दोनों को सहला रहे थे

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सच्ची जीत

रचनाकार- सुधारानी शर्मा, मुंगेली

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शेरसिंह अपने स्वभाव के अनुसार अहंकारी और झगड़ालू स्वभाव का था, दयाराम अपने स्वभाव के अनुसार दयालु था ,गांव वालों ने दयाराम को शेरसिंह के बारे में बताया तो दयाराम ने भी कह ही दिया यदि शेरसिंह मुझसे झगड़ा किया तो मैं उसे मार डालूंगा,

शेरसिंह को यह बात पता चली, तो वह झगड़ालू स्वभाव के कारण गुस्से से तमतमा गया और दयाराम के घर के सामने आकर चिल्लाकर, दयाराम को भला बुरा कहने लगा,दयाराम ने जब शेरसिंह की बात ,उसका चिल्लाना सुना तो वह घर से बाहर निकला, और शेरसिंह को समझाया कि वह ऐसा ना करें, परंतु शेरसिंह नहीं माना और अपने अहंकार के कारण अपशब्द कहने लगा,

दयाराम ने उसे कहा तुम अपशब्द कहकर, भला बुरा कह कर अपने आप को बहादुर समझते हो, अगर सचमुच बहादुर हो तो ,तो मुझसे आकर लड़ाई करो, कुश्ती करो, किसी भी खेल कूद में तुम मेरे साथ मुकाबला करो,

अहंकारी शेर सिंह को अपनी शारीरिक क्षमता पर बहुत घमंड था उसने दयाराम को कहा चलो मैं तुम्हें कुश्ती करने का की चुनौती देता हूं कल दोपहर में आकर तुम मेरे साथ कुश्ती करो.

दयाराम ने उसकी बात मान ली दूसरे दिन दोपहर गांव के सारे लोग इकट्ठा हो गए दयाराम और शेर सिंह की कुश्ती देखने के लिए.

अहंकारी शेरसिंह सोच रहा था कि वह बहुत ही जल्दी दयाराम को हरा देगा पर यह क्या??

दयाराम तो अपने नाम के विपरीत कुश्ती का उस्ताद निकला, उसने दो-तीन दांव में ही शेर सिंह को चित् कर दिया. शेरसिंह का अहंकार पूरी तरह से गायब हो चुका था. वह पूरे गांव वालों के सामने शर्मिंदा महसूस कर रहा था. तब दयाराम ने उसे उठाकर गले लगाया और समझाया कि अहंकार से कभी कोई नहीं जीत सकता, किसी भी क्षेत्र में. किसी को जीतने के लिए स्नेह ,प्यार अच्छा व्यवहार सद व्यवहार नैतिक शिष्टाचार ही काफी होता है. तुम्हारे पास सब कुछ है लेकिन तुमने अहंकार को ही बढ़ावा दिया इसी से तुम्हारी हार हुई अगर तुम सचमुच जीतना चाहते हो तो, लोगों के हृदय को जीतो लोगों के मन को जीतो, तभी तुम्हारी सच्ची जीत होगी

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कबूतरों द्वारा शिक्षा

रचनाकार- श्रीमती मेनका साहू, दुर्ग

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जैसे कोई धातु जब तक पिघलाकर पानी न हो जाए, तब तक उसे कोई सांचा स्वीकार नहीं करता,... इसी प्रकार जब तक के अंदर शिष्य के अंदर वह सच्ची लगन व सच्ची सीखने की लालसा न हो तब तक वह शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता. इस कहानी का यही सर है .

एक बार का जिक्र की एक बादशाह का लड़का पढ़ाई से जी चुराता था उसको कबूतर रखने का बहुत शौक था एक दिन वहां एक महात्मा आ गए. बादशाह ने कहा, महात्मा जी मेरा लड़का पढ़ाई से जी चुराता है. और कबूतर का शौक रखता है. इसको हिदायत करो कि यह कुछ पर लिख जाए. महात्मा ने बच्चों को बुलाकर पूछा तेरे पास कितने कबूतर है?

लड़के ने कहा, ' जी 20'

महात्मा ने कहां की,, ' नहीं 100 200 रख लो,. दोनों इनकी उड़ान देखेंगे.' लड़के ने कहा, ' जी बहुत अच्छा,,,.' जब कबूतर आ गए तो महात्मा ने कहा, ' यह तो बहुत सारे हो गए हैं, इन के नाम रखना चाहिए ' फिर उनके परों पर लिखा, सा रे गा मा प निशा अ........, इत्यादि. इसी तरह पढ़ना लिखना सिखा दिया.

'बच्चों को जबरदस्ती किसी काम या पढ़ाई मे लगानी की जगह उनके मन की वृत्ति को अच्छी तरह समझ कर उसके अनुसार ही शिक्षा का प्रबंध करना चाहिए'.

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