चित्र देखकर कहानी लिखो
पिछले अंक में हमने आपको कहानी लिखने के लिये यह चित्र दिया था –
इस चित्र पर हमें कहानियाँ प्राप्त हुई हैं, जो हम नीचे प्रकाशित कर रहे हैं –
लेखक –संतोष कुमार कौशिक
एक गांव में एक व्यक्ति अपने जानवरों को धो रहा था. जिससे नल का पानी अनावश्यक रूप से बह रहा था. एक बच्ची वहां पहुंचती है और कहती है-' चाचा जी, पानी को बाल्टी में लेकर अपने पशुओं की धोवें. अगर बाल्टी खाली हो तो बाल्टी फिर से भर लीजिए ' वह व्यक्ति उसे डांट कर बोलता है, पानी मेरा है, मैं इसका बिल पटाता हूं. तुम छोटी सी लड़की मुझे सिखाने आई हो. चलो भागो यहां से ' वह बच्ची कहती है-यही स्थिति रही तो एक दिन पानी के लिए तड़पोगे. ऐसा कहकर वहां से आगे बढ़ती है.
कुछ दूर चलने के वह देखती है दो महिलाएं नल के पास, बात करते हुए कपड़े साफ कर रही थीं. पानी अनावश्यक रूप से बह रहा था. उनके पास जाकर बच्ची उन्हें भी समझाती है. दीदी, पहले नल बंद कर लीजिए. कपड़ा साफ करने के बाद आवश्यकता अनुसार पानी का उपयोग कीजिए. ऐसा करोगे तो पानी की बचत होगी. महिलाएं भी उस बालिका को वहां से डांट कर भगा देती हैं. बच्ची पुनः कहती है-यही स्थिति रही तो एक दिन आप सब पानी के लिए तड़पोगे. कह कर आगे बढ़ जाती है.
आगे एक व्यक्ति ब्रश करते हुए मिलता है. खुले नल से पानी बह रहा होता है. उसे देख कर जल रानी कहती है-'भैया ब्रश करने के बाद आवश्यकता अनुसार पानी का उपयोग करिए, इस तरह पानी के नल को खोलकर ब्रश करोगे तो अनावश्यक रूप से पानी नष्ट होगा. यह हमारे लिए नुकसान दायक है. वह व्यक्ति भी उसे डांट कर भगा देता है.
इस तरह वह बच्ची गांव में भ्रमण करते हुए, पानी बर्बाद करने वालों को समझाती रही. लेकिन कोई उसकी बात नहीं सुनता. वह उदास होकर गांव वालों को सबक सिखाने को सोचती है. वास्तव में वह कोई साधारण बालिका नहीं, साक्षात जल माता थी जो एक बालिका का रूप धारण कर लोगों को समझाती घूम रही थी.
जल माता लोगों को सबक सिखाने दो दिन के लिए बाहर चली जाती है. उसके जाने के पश्चात तालाब, नदी, नाला, कुआं, नल सभी जगह पानी सूख जाता है. गांव में पानी के लिए चारों तरफ हाहाकार मच जाता है. लोग दुकान में पानी का बॉटल लेने पहुंचते हैं, वहां भी पानी नहीं मिलता. लोग एक बॉटल पानी के लिए मुंह मांगी कीमत देने को तैयार रहता है. फिर भी पानी नहीं मिलता।अब गांव वालों को एक- एक बूंद पानी की कीमत क्या है यह समझ में आ गया. गांव वाले सोचने लगे कि छोटी सी बालिका हमें पानी बचाने का तरीका बताती रही लेकिन हम लोग उसे डांट कर भगा दिए. इसी का परिणाम है कि हम एक एक बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. हमें इसका प्रायश्चित करना चाहिए. हम सब शपथ लेते हैं कि पानी को बर्बाद नहीं करेंगे और जितनी आवश्यकता है, उतना ही पानी उपयोग करेंगे.
जल देवी समझ जाती है लोग सुधर गए हैं. अब पानी को बर्बाद नहीं करेंगे, ऐसा सोचकर पुनः उस गांव में वापस आती है. धीरे-धीरे तालाब,कुआं,नदी, नल में पानी पहले की तरह भर आता है. गांव वाले अब पानी का उपयोग आवश्यकता अनुसार करते हुए खुशी-खुशी से अपना जीवन निर्वाह करते हैं.
शिक्षक बच्चों को समझाते हैं कि देखो बच्चो, पानी का उपयोग हमें उचित मात्रा में जरूरत के अनुरूप करना चाहिए. पानी को व्यर्थ जाने नहीं देना चाहिए. इस कहानी में पानी बचत करने की, हमें जो शिक्षा मिली है उसे अपने व्यवहार में लाना चाहिए. तत्पश्चात भोजन अवकाश होता है। सभी बच्चे अपने टिफिन और पानी बॉटल रख कर भोजन करते हैं. भोजन के पश्चात बच्चे बॉटल का बचा पानी इधर-उधर फेंकने के बजाय, बाल्टी में बारी-बारी डालते हैं. उस पानी को विद्यालय के कर्मचारी द्वारा पौधे में डाला जाता है. बच्चों का यह व्यवहार देखकर शिक्षक बहुत खुश होते हैं. मन ही मन सोचते हैं कि जो मैं कहानी के माध्यम से शिक्षा दिया वह बच्चों के व्यवहार में झलक रही है.
पानी की कहानी
लेखक –प्रियंका सिंह
रोज की तरह मैं बच्चों को गतिविधि कराते हुए पढ़ा रही थी. सभी बच्चे संपर्क दीदी के साथ 'माई दादाजी हेड अ फार्म' पोयम के साथ झूम रहे थे. तभी सीमा नाम की विद्यार्थी जो कक्षा दूसरी में पढ़ती है मेरे पास आई और बोली -मैम मुझे पेट में दर्द हो रहा है और उसकी समस्या मैं सुन ही रही थी कि प्रतिमा जो कक्षा तीसरी में पढ़ती है पास आई और बोलने लगी मैम मेरे सिर में दर्द हो रहा है तभी विमला आई और बोली मैम अनीता को चक्कर आ रहे हैं. मैं यह सब देखकर बहुत परेशान हो गई. मैंने तुरंत अपनी डॉक्टर मित्र को कॉल किया वह बिना विलंब किए विद्यालय आ गईं. मैंने उनसे इसका कारण जानने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि इस उम्र में इस तरह की समस्याओं का मुख्य कारण शरीर में पानी की कमी हो सकती है. बच्चों के लिए उम्र के हिसाब से पानी की आवश्यकता बदलती रहती है. पानी पीने के बजाय शीतल पेय ज्यादा पीने से बच्चों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ने लगता है. बच्चों का वजन कम होने लगता है वे अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की तुलना में सुस्त नजर आते हैं. यह सारी समस्याएँ डिहाइड्रेशन की वजह से हो रही है. मैंने व बच्चों ने उनकी बातों को बड़े गौर से सुना और उनकी सलाह मानते हुए दिन में अधिक से अधिक पानी पीने की बात कही और उन्हें धन्यवाद किया. अब मुझे कुछ अहम निर्णय लेने थे. मैं ऐसे तो बच्चों को परेशान होते नहीं देख सकती थी . मैंने बच्चों के लिए अगले दिन स्ट्रा लाई और सभी को स्वयं के गिलास या बोतल लेकर आने को कहा. मैंने कालखंड के मध्य में *'पानी पीने की घंटी'* का समय निर्धारित किया और घंटी बजते ही बच्चे पानी पीने लगे. बोतल का पानी खत्म होने पर विद्यालय में रखी टंकी और बाल्टी से पानी भरने लगे. मैंने पाया कि 1 से 2 सप्ताह में ही बच्चों के स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक बदलाव हुआ. बच्चे पहले की अपेक्षा अधिक चंचल और फुर्तीले हो गए थे और अब उनकी सारी शिकायतें भी दूर हो गईं थी. मैंने बच्चों को छत पर पक्षियों के लिए पानी रखने को भी कह दिया है और घर के बाहर जानवरों के लिए भी पानी रखने की सलाह दी. साथ ही अब हम अपने विद्यालय और समाज में जल संरक्षण के प्रति जागरूकता फैला रहे हैं. साथ ही बच्चों को यह सीख भी दी जा रही है कि हमें अपने पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी सजग रहना चाहिए
अब नीचे दिये चित्र को देखकर एक बढ़िया सी कहानी स्वयं या अपने बच्चों को चित्र दिखाकर लिखने का अवसर दें और हमें ई-मेल से kilolmagazine@gmail.com पर भेज दें. अच्छी कहानियां हम किलोल के अगल अंक में प्रकाशित करेंगे.