पदार्थों का पृथक्करण

अनेक पदार्थों को यदि एक दूसरे मे मिला दिया जाये और उनमें कोई रायासनिक क्रिया न हो तो इन पदार्थों का एक मिश्रण बन जाता है. रसायनिक क्रिया होने पर मिश्रण नहीं बनता बल्कि एक नया पदार्थ ही बन जाता है. मिश्रण में जितने भी पदार्थ मिले हुए होते हैं उन सभी के गुण हम अलग-अलग देख सकते हैं. उदाहरण के लिये यदि पानी के एक गिलास मे हम नमक मिलायें और उसे चख कर देखें तो पानी में नमक का स्वाद आयेगा. इसके बाद उसमे चीनी भी मिला दें तो नमक और चीनी दोनो का स्वाद आयेगा. प्रकृति में हमे अनेक मिश्रण दिखाई देते हैं. तालाब के पानी में अनेक पदार्थ मिले हुए होते हैं. इसी प्रकार मिट्टी भी अनेक पदार्थों का मिश्रण है.

किसी मिश्रण मे मिले हुए पदार्थों को अलग करने को ही पदार्थों का पृथक्करण कहा जाता है. इसकी अनेक विधियां हैं: -

बीनना – यदि आपस में मिले हुए पदार्थों के कण काफी बड़े हैं और अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं तो उन्हें हाथ से बीन कर अलग किया जा सकता है. हम कक्षा में गेहूं, चावल आदि से कंकण बीन कर अलग करने की गतिविधि करवा कर बीनने की विधि समझा सकते हैं.

चालना – यदि कण छोटे हैं और उन्हे हाथ से बीनकर अलग नहीं किया जा सकता परंतु मिले हुए पदार्थों के कणो का आकार अलग-अलग है तो उन्हें चलनी से अलग किया जा सकता है. चलनी में एक आकार के छेद होते हैं. जो कण इन छेदों से छोटे आकार के होते हैं वे चलनी के छेदों के पार चले जाते हैं और बड़े आकार के कण चलनी में ही रह जाते हैं. हम चलनी से आटा आदि चालने की गतिविधि करके कक्षा में दिखा सकते हैं.

फटकना –यदि किसी पदार्थ के कण पर बल लगाया जाये तो वह कण अपने भार के अनुसार अपने स्थान से हिलेगा. अत: यदि छोटे और बड़े कणों पर एक समान बल लगाया जाये तो छोटे कण दूर जाकर गिरेंगे परंतु बड़े कण या तो अपने स्थान से हिलेंगे ही नहीं और या फिर पास में ही गिरेंगे. इस बात का उपयोग सूप से फटककर पदार्थों को अलग करने में किया जाता है. इसका उपयोग घरों में गेहूं, चावल आदि से कंकण अलग करने में किया जाता है.

उड़ावनी – उड़ावनी में भी इसी बात का प्रयोग किया जाता है कि छोटे कण बल लगाने पर दूर गिरते हैं परंतु बड़े कण पास ही गिर जाते हैं. इसमें हवा के बल का प्रयोग करके छोटे कणों को दूर उड़ा दिया जाता है. इसका उपयोग अक्सर अनाज को भूसे से अलग करने में किया जाता है.

चुम्बकीय पृथक्करण – चुम्बकीय पदार्थ जैसे लोहा चुम्बक की ओर आकर्षित होते हैं. इसका उपयोग करके किसी मिश्रण से चुम्बकीय पदार्थ को चुम्बक की सहायता से अलग किया जा सकता है. कक्षा में हम रेत और लौह चूर्ण का मिश्रण बनाकर उसे चुम्बक की सहायता से अलग करने की गतिविधि करा सकते हैं.

निथारना – पानी या किसी द्रव में किसी अन्य अविलेय पदार्थ के मिश्रण को निथार कर अलग किया जा सकता है. इसमें गुरुत्वाकर्षण के बल का प्रयोग कणों को अलग करने में होता है. यदि पानी या अन्य द्रव में अविलेय पदार्थ के मिश्रण को कुछ देर तक बिना हिलाये रखा जाये, तो अविलेय पदार्थ के कण भारी होने के कारण नीचे बैठ जायेंगे. अब बर्तन को सावधानी से उठाकर ऊपर के पानी को किसी अन्य बर्तन में डाला जा सकता है. अन्य पदार्थ के भारी कण पहले बर्तन में ही रह जायेंगे. इसे ही निथारना कहते हैं. कक्षा में आसानी से गतिविधि के माध्यम से इसे दिखाया जा सकता है.

दो अविलेय द्रवों को पृथक्कारी कीप से अलग करना – पृथक्कारी कीप बनाने के लिये एक प्लास्टिक की बोतल की तली को काट दें और बोतल के मुंह को किसी कार्क अथवा रबर के ढ़क्कन से इस प्रकार बंद करें कि उसमें से द्रव बाहर न निकल सके. अब पास के अस्पताल से एक पुराना ड्रिप सेट लाकर उसे इस बोतल के मुंह में लगा दें. अब बोतल को किसी खूंटी पर टांग दें और उसमें पानी तथा तेल का मिश्रण भर दें. मिश्रण को अच्छी तरह मिला लें जिससे पानी और तेल आपस में मिल जायें. अब बोतल को कुछ देर बिना हिलाये टंगा रहने दें. तेल पानी से हल्का होने के कारण ऊपर एकत्रित हो जायेगा और पानी नीचे आ जायेगा. अब ड्रिप सेट की टोटी को खोलें. नीचे एकत्रित पानी बाहर आने लगेगा. इसे एक बर्तन में एकत्रित कर लें. पानी पूरा बाहर आने के बाद ड्रिप सेट की टोंटी बंद कर दें. तेल बोतल में ही रह जायेगा. इस प्रकार गुरुत्वाकर्षण बल का उपयोग करके हमने अविलेय द्रवों को पृथक्कारी कीप की सहायता से अलग कर लिया है.

भारण – इसका उपयोग किसी कोलाइडल सोल के पदार्थों को अलग करने में किया जाता है. कोलाइडल सोल में पदार्थ के कण पर बिजली का चार्ज रहता है जिसके कारण वे एक दूसरे से दूर रहते हैं और उनमे इतना भार नहीं होता कि वे द्रव में नीचे बैठ सकें. तालाब आदि का गंदला पानी और दूध आदि इसके उदाहरण हैं. इस सोल में यदि कोई ऐसी वस्तु मिलाई जाये जिससे कोलाइड के कणों से बिजली का चार्ज समाप्त हो सके तो यह कण एक दूसरे से मिलकर भारी हो जाते हैं और नीचे बैठ जाते हैं. गंदले पानी में फिटकरी मिलाने से कुछ देर बाद गंदगी नीचे बैठ जाती है और ऊपर साफ पानी रह जाता है. इसका उपयोग पेयजल की सफाई में किया जाता है. इसी प्रकार दूध में नीबू का रस मिला देने पर दूध के ठोस पदार्थ अलग होकर पनीर के रूप में नीचे बैठ जाते हैं और पानी मात्र ऊपर रह जाता है. इसका उपयोग दूध से पनीर बनाने मे किया जाता है.

अपकेंद्रण – यदि किसी वस्तु को गोल घुमाया जाये तो उसमें एक बल उत्पन्न होता है जो उसे बाहर की ओर फेंकता है. इसे अपकेंद्री बल कहते हैं. किसी पत्थर या अन्य भारी वस्तु को एक रस्सी से बांधकर गोल घुमाने की गति‍विधि करके बच्चों को कक्षा में अपकेंद्री बल समझाया जा सकता है. अपकेंद्री बल का प्रयोग करके कणों को एक दूसरे से अलग करने को अपकेंद्रण कहते हैं.

arvindgupta.com से साभार

छानना – जैसे चालने में अलग-अलग आकार के कणों को अलग किया जाता है वैसे ही छानने में भी बहुत छोटे आकार के कणों को छन्नी की सहायता से अलग किया जाता है. छन्नी अथवा फिल्टर में बहुत बारीक छेद होते हैं जिससे छोटे कण भी छन्नी में से बाहर नहीं जा सकते और पानी या अन्य द्रव ही बाहर जा सकता है. इसका उदाहरण देने के लिये हम फिल्टर पेपर की सहायता से अशुध्द पानी को छानकर दिखा सकते हैं. फिल्टर पेपर न होने पर अखबार के कागज का उपयोग फिल्टर पेपर के रूप में किया जा सकता है.

वाष्पीकरण – इसका उपयोग विलेय पदार्थों के प्रथक्करण में किया जाता है. कक्षा में गतिविधि कराने के लिये एक बर्तन में नमक मिला हुआ पानी लें और उसे गर्म करके पूरा पानी वाष्प बनकर उड़ जाने दें. बर्तन की तली में नमक बच जायेगा.

आसवन – इसमे हम वष्पीकरण करके किसी द्रव को गैस में परिवर्तित करते हैं और फिर उस गैस को ठंडा करके पुन: द्रव में परिवर्तित कर लेते हैं. नमक मिले पानी के प्रयोग में यदि हम वाष्प को किसी ठंडी स्टील की प्लेट से टकराने दें तो यह वाष्प वापस पानी बन जायेगी और पानी की बूंदों के रूप में प्लेट पर एकत्रित हो जायेगी. पानी की इन बूंदों को हम किसी अन्य बर्तन में भी एकत्रित कर सकते हैं. इस प्रकार हमने नमक मिले पानी से नमक और पानी को अलग- अलग प्राप्त कर लिया है.

क्रि‍स्टलीकरण – किसी कांच के बर्तन में पानी को गर्म करें और उसमे नीला थोथा तब तक मिलायें तब तक और अधिक नीला थोथा उसमे घुलना बंद न हो जाये. अब पानी को ठंडा करें. बर्तन की तली पर लीले थोथे के क्रिस्टसल दिखाई देंगे.

ऊर्घ्‍वपातन– यह ऐसे ठोस पदार्थों को पृथक करने के लिये प्रयोग किया जाता है जो गर्म करने पर ठोस से सीधे गैस में बदल जाते हैं, जैसे नौसादर, कपूर आदि. एक कांच के बर्तन में नमक और नौसादर का मिश्रण लेकर उस बर्तन के मुंह को रुई से बंद कर लें और फिर बर्तन को गर्म करें. नौसादर की सफेद वाष्प ऊपर उठेगी. अब इसे ठंडा होने दें. नौसादर की वाष्प बर्तन की दीवारों पर वापस ठोस बनकर जम जायेगी और तली में केवल नमक रह जायेगा. इसे ऊर्घ्‍वपातन कहते हैं.

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