छत्तीसगढ़ी बालगीत

पुतरा-पुतरी के बिहाव

रचनाकार- सोमेश देवांगन

पुतरा-पुतरी के, होही बिहाव.
देखव सुघ्घर, मड़वा छवाव..

डारा- पान, टोर के लावव.
झालर लगा के, बने सजाव..

छोटे छोटे, मड़वा गड़ाव.
तीर- तीर मा, चउक पुराव..

जल्दी जल्दी, चुलमाटी जावव.
माटी कोड़ के, तूमन लावव..

नोनी सुघ्घर, करसा सिरजाव.
ओखर ऊपर, दीया जलाव..

देवता म, तेल हरदी चढ़ाव.
पुतरा-पुतरी म, घलो लगाव..

नान नान कपड़ा, सिलवाव.
मऊर मुकुट, सुग्घर पहिराव..

पुतरा-पुतरी ल, बने सजाव.
उखर मन के, बिहाव रचाव..

आगे बरतिया, बरात परघाव.
सुग्घर अकन दाईज परवाव..

पुतरी- पुतरा के, भावर ला पराव.
इंखर जल्दी, बिहाव ला कराव..

पुतरी -पुतरा के हो गे बिहाव.
अक्ती तिहार ल, सुघ्घर मनाव..

छत्तीसगढ़ महतारी

रचनाकार- हितेंद्र कोंडागाँव

भात संग पताल-चटनी,
अउ सरसों भाजी के साग.
छत्तीसगढ़ के महमहाथे,
अंगाकर रोटी अउ बैचांदी के पाग.

चीला,फरा कस गुरतुर-गुरतुर,
दाई-ददा के मया.
आलूकांदा, सकरकांदा,
कोचई, सुकसी के झोर.
चल संगी रांध के खाबों,
हमन झोरे-झोर.

डुबकी कढ़ी के सवाद ल,
कहाँ पाबे रे भईया.
अइसन खट-मीठ गोठ बात ल,
संगवारी संग आज छत्तीसगढ़ी म,
तय गोठिया ले रे भईया.

डोकरी दाई कहे

रचनाकार- जितेंद्र कुमार सिन्हा

गली खोर म जादा झन खेल
पिसान ल सान अउ रोटी बेल
सील में नून मिर्चा ल पीस
अँगना ल बहार, घर ल लीप.
मुँहू ल बंद राखे कर
झन करे कर खिस खिस.

डोकरी दाई काहे

नोनी तेहा घर के बुता ल जान
बात कहत हे बड़े सियान
मइके ससुरा ल चलाबे,
बेटी चूल्हा ल जलाबे
करबे सेवा ससुर-सास के
अउ जांगर चलत ले कमाबे.

डोकरी दाई किहिस

पति के सेवा करबे
कोट कोट ले खवा बे
मार दिही गुस्सा म लात
दुरिहा झन जाबे

फेर एक दिन का होविस
डोकरी दाई किहिस

चल उठ बेटी दौड़े ल जाबे
पढ़ पुस्तक-कापी
अउ सीख कुश्ती-कराटे
छोड़ सुख्खा रोटी
अब खा तेहा घी पराठा

डोकरी दाई किहिस

टूरा मन फिलिम मोबाइल
के गेम म भुलाये हे
कोई जनि काबर मुड़ी ल रँगाये हे,
चल उठ बेटी
धर्म ल तोला बचाना हे
देश के सियार म माते हे झगरा
अब तुही ल जाना हे
झन बाँचे एको बैरी
बन्दूक तुही ल उठाना हे

महतारी पूछय सवाल

रचनाकार-सोमेश देवांगन

मोर छत्तीसगढ़ महतारी ह पूछय फेर सवाल.
मोर हरियर अँछरा फेर होगे काबर लाल..

घर के दुश्मन घुन कस कीरा छाती छेदत हे.
दुलरुवा बेटा मन के जीव परान ल लेवत हे..

काबर अतका बाढ़त हावय घोर अत्याचार.
महतारी ला घलो आँखी देखावत हे दुराचार..

ये घुनहा बीमारी ले मोला घलो अब बचावव.
घर के बैरी दुश्मन ल खोज के मार गिरावव..

चल भइया गा पेड़ लगाबो

रचनाकार- श्लेष चन्द्राकर

बखरी ला अउ नीक बनाबो.
चल भइया गा पेड़ लगाबो..

फूल फूलही अउ ममहाही.
तब तितली भौंरा मन आही..
जीव-जंतु ला तीर बलाबो.
चल भइया गा पेड़ लगाबो...

मोर गोठ ला तँय हा ले सुन.
रोज देखबो चिरई-चिरगुन..
सुग्घर दिन-भर छइँहा पाबो.
चल भइया गा पेड़ लगाबो...

आम बिही अउ जामुन फरही.
पाका फर ले डलिया भरही..
उसर-पुसर के हम फर खाबो.
चल भइया गा पेड़ लगाबो...

रुखमन ले ऑक्सीजन मिलथे.
तेखर ले ये जिनगी चलथे..
सब ला येकर लाभ बताबो.
चल भइया गा पेड़ लगाबो...

कोरोना से बचाव

रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'

कोरोना के काल मा, मचगे हाहाकार.
घर मा सुग्घर सब रहव, होही येखर हार..

घेरी बेरी सोंच के, होवव झन परशान.
आगे अब वेक्सीन हर, बचही सबो परान..

खाव जी तुलसी दल ला, खाँसी दूर भगाव.
गरम गरम पानी पियो, देह म ताकत लाव..

घर मा जम्मो बइठ के, सुनव गीत संगीत.
खुश होही लइका सबो, बढ़ही सबके मीत..

सोंच सकारात्मक रहै, राखव दृढ़ विश्वास.
बुरा काल हर भागही, राखव मन मा आस..

चार

रचनाकार- संतोष कुमार तारक

डोंगरी पहाड़ म जाबो,
पाके-पाके चार लाबो.
लाल तेंदू ल दोना भरके,
नंगत के मजा उड़ाबो.
गेदराय भेलवा ह गजब,
टपके महुआ ल पाबो.
सुखड़ी ल घर लानबो,
माई-पिला बैठ खाबो.

कोरोना के रोना

रचनाकार- सीमांचल त्रिपाठी

कोरोना के रोना परगे
चिटको शरम नइ आय.

न घाम न जाड़,
न भूख न प्यास.
फैलादिस जग म,
कर दिस मन उदास..
मुंह ल तोपे बर दिन भर मास्क बंधाय
कोरोना के रोना.......

चीन ले जनम धरीस,
अउ मचा दिस हाहाकार.
एकर ठऊर न ठिकाना,
न होवय रूप आकार..
भाग जाही कहिके थारी, घंटी ल बजाय
कोरोना के रोना..........

गुरूजी करत हे ड्यूटी,
किसिम-किसिम करत हे सेवा.
परिवार मन कहत हे,
टीका लगाय घलो बीमा त कर देवा..
मनसे कर सेवा बर ड्यूटी घलो बजाय
कोरोना के रोना........

डोकरी-डोकरा मन बर,
पहिली चरण म टीका ह आईस.
कोरोना ल भगाय बर,
दू-दू डोज म टीका घलो लगाईस..
तभो ले काबे झपाय ऊपर झपाय
कोरोना के रोना........

जवान मन के बारी आगे आईस,
दूसर चरण म टीका पैईतालीस पार लगावत हे.
कोनो ल जर आवत हे
कौनो मजा उड़ावत हे
सोच समझ के सबो झन
टीका सुग्घर लगाय.

कोरोना के रोना........

युवा मन के बारी आगे आईस,
तीसर चरण म टीका ह अठारह पार लगावत हे.
सोचत-सोचत जावत हे
हाँसत-खेलत आवत हे
का करबे संगी ऐ पापी ल,
कोन ह कतक समझाय.

मनसे के समझदारी हे,
घर म सुरक्षित रहे बर समझाय..
साबुन ले हाथ धो के सेनेटाइज कराय
कोरोना के रोना........

हरियागे धरती के अछरा

रचनाकार-लक्ष्मी तिवारी

आगे सावन के पहली फुहार,
हरियागे धरती के अछरा,
हरियागे भुइयां के अछरा,

फुलगे,कांसी,मोगरा,अउ कचनार
हरियागे धरती के अछरा,
हरियागे भुइयां के अछरा,

१:- राउत के बंसी बाजत हवय हरियर पियर खार म.
जथे बिहनिया नागर धरके किसान ह खेत खार म..
बिहनिया सुरूज संग किसान होवत हे तियार
हरियागे धरती के अछरा,
हरियागे भुइयां के अछरा,

२:- भारत भुइयां म छतीसगढ़ ह कहाथे धान कटोरा.
धान पान सब होते संगी सावन पानी के निहोरा.
सुवा,ददरिया,कर्मा गाथे हमर गाँव के बनिहार
हरियागे धरती के अछरा,
हरियागे भुइयां के अछरा,

३:- किसान के सब रोजी रोटी हवय धान के किसानी म.
ये किसानी होथे भैया बरखा के पानी म.
पानी ले जिन्दगानी हवै कहिथे सब सियान..
हरियागे धरती के अछरा,
हरियागे भुइयां के अछरा,
आगे सावन के पहली फुहार,
हरियागे धरती के अछरा,
हरियागे भुइयां के अछरा,

फुलगे,कांसी,मोगरा अउ कचनार,
हरियागे धरती के अछरा,
हरियागे भुइयां के अछरा..

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