कहानियाँ

पंचतंत्र की कथाएँ-मित्रता में बड़ी शक्ति है

तीन मित्र मन्थरक कछुआ,लघुपतनक कौवा और हिरण्यक चूहा बैठे-बैठे यहाँ- वहाँ की बातें कर रहे थे कि वहाँ चित्राँग नाम का हरिण कहीं से दौड़ता हाँफता आ गया. एक व्याध उसका पीछा कर रहा था. हरिण को आता देखकर कौवा उड़कर वृक्ष की शाखा पर बैठ गया. हिरण्यक पास के बिल में घुस गया और मन्थरक तालाब के पानी में जा छिपा.

कौवे ने हरिण की दशा देखकर मन्थरक से कहा- मित्र मन्थरक! यह तो एक प्यासा हरिण है, जो पानी पीने तालाब पर आया है.

मन्थरक बोला, यह हरिण बार-बार पीछे मुड़कर देख रहा है और डरा हुआ-सा है. यह प्यासा नहीं, बल्कि व्याध के डर से भागा हुआ है. देख तो सही इसके पीछे व्याध आ रहा है या नहीं.

दोनों की बात सुनकर चित्राँग हरिण बोल- मन्थरक ! मेरे भय का कारण तुम जान गए हो. मैं व्याध से डरकर बड़ी कठिनाई से यहाँ पहुँच पाया हूँ. तुम मेरी रक्षा करो. मुझे कोई ऐसी जगह बतलाओ जहाँ व्याध न पहुँच सके.

मन्थरक ने हरिण को घने जंगल में भाग जाने की सलाह दी. किन्तु लघुपतनक ने ऊपर से देखकर बताया कि व्याध दूसरी दिशा में चले गए हैं, इसलिए अब डर की कोई बात नहीं है. इसके बाद चारों मित्र तालाब के किनारे वृक्षों की छाया में बैठे देर तक बातें करते रहे.

कुछ समय बाद एक दिन कछुआ, कौवा और चूहा बातें कर रहे थे, शाम हो गई पर हरिण नहीं आया तीनों को सन्देह होने लगा कि कहीं वह व्याध के जाल में तो नहीं फँस गया?

बहुत देर तक भी चित्राँग नहीं आया तो मन्थरक ने लघुपतनक को जंगल में जाकर हरिण को खोजने की सलाह दी. लघुपतनक ने कुछ दूर जाकर देखा कि चित्राँग एक जाल में बँधा हुआ है. लघुपतनक उसके पास गया. उसे देखकर चित्राँग की आँखों में आँसू आ गए. वह बोला अब मेरी मृत्यु निश्चित है अन्तिम समय में तुम्हारे दर्शन करके मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई, मेरे अपराध क्षमा करना.

लघुपतनक ने धीरज बँधाते हुए कहा- घबराओ मत. मैं अभी हिरण्यक चूहे को बुला लाता हूँ. वह जाल काटकर तुम्हे मुक्त कर देगा.

यह कहकर वह चला गया और शीघ्र ही हिरण्यक को पीठ पर बिठाकर ले आया. हिरण्यक अभी जाल काटने ही जा रहा था कि लघुपतनक ने वृक्ष के ऊपर से दूर देखकर कहा यह तो बहुत बुरा हुआ.

हिरण्यक ने पूछा- क्या व्याध आ रहा है?

लघुपतनक नहीं, व्याध तो नहीं, किन्तु मन्थरक कछुआ इधर चला आ रहा है. हिरण्यक तब तो खुशी की बात है. दु:खी क्यों होता है?

लघुपतनक दुःखी इसलिए होता हूँ कि व्याध के आने पर मैं ऊपर उड़ जाऊँगा, हिरण्यक बिल में घुस जाएगा, चित्राँग भी छलाँगें मारकर घने जंगल में चला जाएगा; लेकिन यह मन्थरक कैसे अपनी जान बचाएगा ? यही सोचकर मैं चिन्तित हो रहा हूँ.

मन्थरक के वहाँ आने पर हिरण्यक ने मन्थरक से कहा मित्र ! तुमने यहाँ आकर अच्छा नहीं किया. अब भी वापस लौट जाओ, कहीं व्याध न आ जाए.

मन्थरक ने कहा- मैं अपने मित्र को आपत्ति में जानकर वहाँ नहीं रह सका. सोचा उसकी आपत्ति में कुछ सहायता करूँगा, तभी चला आया.

ये बातें हो ही रही थीं कि उन्होंने व्याध को उसी ओर आते देखा. चूहे ने उसी क्षण चित्राँग के बन्धन काट दिए. चित्राँग उठकर भाग खड़ा हुआ. लघुपतनक उड़कर वृक्ष पर बैठ गया. हिरण्यक पास के बिल में घुस गया.

व्याध अपने जाल में किसी को न पाकर बड़ा दुःखी हुआ. वह वापस जाने को मुड़ा ही था कि उसकी दृष्टि धीरे-धीरे जाने वाले मन्थरक पर पड़ गई. उसने सोचा, आज हरिण तो हाथ आया नहीं, कछुए को ही ले चलता हूँ. कछुए को ही आज भोजन बनाऊँगा. यह सोचकर व्याध कछुए को कन्धे पर डालकर चल दिया.

यह देख हिरण्यक और लघुपतनक को बड़ा दुःख हुआ. चित्राँग भी व्याकुल हो गया. तीनों मन्थरक की मुक्ति का उपाय सोचने लगे.

कौए ने एक उपाय ढूँढ निकाला. वह यह कि चित्राँग व्याध के मार्ग में तालाब के किनारे जाकर लेट जाए. मैं तब उसे चोंच मारने लगूँगा. व्याध समझेगा कि हरिण मरा हुआ है. वह मन्थरक को भूमि पर रखकर जब चित्राँग को लेने आए तब हिरण्यक मन्थरक के बन्धन काट दे. मन्थरक तालाब में घुस जाए और चित्राँग छलाँगें मारकर घने जंगल में चला जाए. मैं उड़कर वृक्ष पर चला ही जाऊँगा. सभी बच जाएँगे, मन्थरक भी मुक्त हो जाएगा.

तीनों मित्रों ने यही उपाय किया चित्राँग तालाब के किनारे मृतवत् जा लेटा. कौवा उसकी गर्दन पर सवार होकर चोंच मारने लगा. व्याध ने देखा तो समझा कि हरिण जाल से छूटकर दौड़ता-दौड़ता यहाँ आकर मर गया है. उसे लेने के लिए वह जालबद्ध कछुए को जमीन पर छोड़कर आगे बढ़ा तो हिरण्यक ने अपने तीखे दाँतों से जाल के बन्धन काट दिए. मन्थरक पानी में घुस गया चित्राँग भी जंगल में दौड़ गया.

व्याध ने चित्राँग को दौड़कर जाते देखा तो आश्चर्यचकित रह गया. वापस जाकर जब उसने देखा कि कछुआ भी जाल से निकलकर भाग गया है. तब उसके दुःख की सीमा न रही. व्याध वहीं बैठकर विलाप करने लगा.

चारों मित्र, लघुपतनक, मन्थरक, हिरण्यक और चित्राँग प्रसन्नता से फूले न समाते थे. मित्रता के बल पर ही चारों ने व्याध से मुक्ति पाई थी.

नन्ही सी लड़की

रचनाकार-सीमा यादव

मीरा नाम की एक छोटी-सी लड़की अपने मासूम और चंचल स्वभाव के कारण सबकी चहेती और लाडली थी. मीरा बहुत समझदार थी. मीरा जब छोटी थी तभी उसके माता -पिता आपस में तालमेल न होने की वजह से अलग हो गए थे. मीरा के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारी उसकी माँ पर आ गयी थी. मीरा की माँ धार्मिक स्वभाव की थी, उनका प्रभाव मीरा पर भी था. मीरा अब बड़ी हो रही थी, इसलिए उसकी माँ मीरा की आगे की पढ़ाई पर आने वाले खर्च की व्यवस्था को लेकर चिंतित रहती थीं. उनके पास इतना धन नहीं था कि मीरा को महँगी फीस वाली उच्च शिक्षा दिला सकें. मीरा के शिक्षक ने मीरा की योग्यता को पहचान कर उसे नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. मीरा ने प्रवेश परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए और उसका चयन हो गया. मीरा ने छठवीं से बारहवीं तक की निःशुल्क शिक्षा नवोदय विद्यालय से पूरी की. मीरा अब बौद्धिक रूप से परिपक़्व हो गयी थी. वह अपनी माँ की भावनाओं को भलीभाँति समझती थी. मीरा आगे की शिक्षा भी पूरी करना चाहती थी, परन्तु आर्थिक समस्या के कारण सोच में पड़ी रहती कि क्या करूँ जिससे मेरी आगे की पढ़ाई पूरी हो सके?

एक दिन मीरा ने समाचार पत्र में एक प्रतियोगिता का विज्ञापन देखा. प्रतियोगिता मे अच्छे अंक प्राप्त करने पर एक बड़ी राशि पुरस्कार के रूप में मिलनी थी. उसने प्रतियोगिता में भाग लिया और पुरस्कार जीत लिया. उन रुपयों से उसने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की. अब मीरा ने स्कूल की अध्यापिका के रूप मे कार्य करने का निर्णय किया और आत्मनिर्भर हो गई. मीरा अपने समाज की पहली इतनी शिक्षित लड़की है. मीरा ने अपने समाज की सभी लड़कियों के लिए आदर्श स्थापित करके यह साबित कर दिया है कि यदि सच्चे मन से पूरी शक्ति लगाकर किसी चीज को पाने की कोशिश करें, तो सफलता अवश्य मिलती है.

तनु की सूझबूझ

रचनाकार- टीकेश्वर सिन्हा 'गब्दीवाला'

स्कूलों में वार्षिक परीक्षा परिणाम घोषित किये जा रहे थे. तनु कक्षा पाँचवीं में प्रथम आयी थी. उसके छोटे भाई शुभम ने भी कक्षा तीसरी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी. दोनों भाई-बहन स्कूल से आकर बैठक में टेबल पंखा चालू कर सोफे पर बैठ गये. मम्मी-पापा घर पर नहीं थे. दोनों को एक-दूसरे की अंकसूची देखने की इच्छा हुई पर पहले अंकसूची दिखाने के लिए दोनों में से कोई तैयार नहीं था. दोनों में अंंकसूची के लिए छीना-झपटी होने लगी.

अचानक शुभम का हाथ पंखे से टकरा गया. चालू पंखे में करंट प्रवाहित होने के कारण उसका हाथ पंखे से चिपक गया. शुभम की चीख सुनकर तनु सहम गयी फिर तुरंत उसने दीवार पर टँगी सायकल की पंचर ट्यूब से शुभम को पकड़कर पंखे से अलग किया. तनु एकदम घबरा गयी. अचेत शुभम को पलंग पर लिटाकर पड़ोस की कौर आंटी को बुलाने गयी. तब तक मम्मी-पापा भी आ गये. तनु ने मम्मी-पापा को घटना की पूरी जानकारी दी. पापा डॉक्टर को बुलाने चले गये. मम्मी शुभम को गोद में लेकर पलंग पर बैठ गयी. मम्मी भी बहुत घबरायी हुई थी.

डाॅक्टर के उपचारोपरांत शुभम को होश आया. डॉक्टर तनु के पापा से बोले- 'चंद्राकर जी, घबराने की कोई बात नहीं. मैंने इंजेक्शन लगा दिया है. ये टेबलेट्स शाम और सुबह लगातार दो दिन तक देते रहिएगा. ' डॉक्टर के जाने के बाद एकत्रित हुए लोग तनु की सूझबूझ की चर्चा करने लगे.

'छोटी सी बच्ची ने क्या दिमाग लगाया. ' खान चाचा बोले.

'थैंक गाॅड! ' जाॅन अंकल ने भी हामी भरी.

घटना के बारे में सुनकर सभी को आश्चर्य होने लगा. मुसीबत के समय क्या दिमाग लगाया है. वाह, बहुत खूब.

कौर आंटी ने तनु से पूछा- 'तनु, तुम ने शुभम का हाथ पंखे से चिपकने पर उसे अलग करने के लिए साइकिल-ट्यूब का ही उपयोग क्यों किया?'

तनु बताने लगी- 'आंटी जी, हमारी रूबीना मैडम, जो हमें विज्ञान पढ़ाती हैं. उन्होंने बताया था कि रबड़, चमड़े, मोम, सूखे कपड़े, सूखी लकड़ी विद्युत के कुचालक है. इनमें करंट प्रवाहित नहीं होता. शुभम भाई का हाथ पंखे से चिपकने पर मुझे रबड़ ट्यूब का ख्याल आया और इसी से शुभम को पकड़कर पंखे से अलग किया. ' यह सुनकर सभी तनु की सूझबूझ की प्रशंसा करने लगे.

प्यारी गौरेया

रचनाकार- सुरेखा नवरत्न

मोनू घर के आँगन में खेल रहा था. तभी उसनें देखा कि आँगन वाली दीवार में पत्थरों के ठीक बीचों- बीच एक खाली जगह में एक गौरैया घोंसला बना रही है. गौरैया अपनी चोंच में तिनका लेकर आती और उसे घोंसले में लगाती,फिर उड़ जाती. फिर दूसरा तिनका लेकर आती फिर उड़ जाती.

कुछ ही दिनों में गौरेया ने घोंसला तैयार कर लिया. अब चिड़ी उसके अंदर आराम किया करती. शायद चिड़ी ने अण्डे दिए थे. जब वह बाहर जाती तब अपनी गर्दन बाहर निकालकर चूँ चूँ की आवाज करती. इधर- उधर देखती और फुर्र.. से उड़ जाती.

एक दिन सुबह- सुबह चिड़ी जोर -जोर से आवाज करने लगी. उसकी आवाज सुनकर मोनू जाग गया. मोनू आँखे मलते हुए कमरे से बाहर निकला और देखा कि एक छोटी सी चिड़िया घोंसले से नीचे गिर गई है और उसके ऊपर चींटियाँ भी चढ़ गई हैं.

मोनू ने झट से उस नन्ही चिड़िया को अपने हाथों में उठा लिया. उसने देखा कि नन्ही चिड़िया को थोड़ी चोट भी लगी थी. मोनू ने चोट वाली जगह पर हल्दी का लेप लगाया और उसे घोंसले में वापस रख दिया.

मोनू ने देखा कि घोंसले में चिड़ी का एक और बच्चा भी था.

धीरे-धीरे गौरैया के बच्चे बड़े होने लगे. अब वे भी अपनी माँ के साथ चूँ- चूँ,करते थे. एक दिन मोनू रोटी खा रहा था. तभी छोटी चिड़िया मोनू के पास आकर बैठ गई. मोनू बहुत खुश हुआ.उसने छोटी चिड़िया के मुँह में रोटी का एक छोटा सा टुकड़ा डाल दिया. बच्चा झट से रोटी खाकर उड़ गया.

अब चिड़ी के बच्चे उड़ना सीख गए थे. जब- जब मोनू आँगन में खेलता तब-तब चिड़ी के बच्चे उसके आसपास आ जाया करते. अब वे दोस्त बन गए हैं.

व्यापारी और गधा

रचनाकार- साक्षी पत्रवाणी, कक्षा दसवीं, शासकीय उ. मा. विद्यालय, पंधी

एक बार एक गधा और एक आदमी रास्ते पर जा रहे थे, रास्ते में गधा गहरे गड्ढे में गिर गया, आदमी ने अपने प्रिय गधेे को गड्डे से निकालने का भरपूर प्रयास किया. लेकिन काफी प्रयत्न करने के बाद वो भी असफल ही रहा. वह बहुत दुखी हो गया. लेकिन वह गधे को ऐसी हालत में छोड़कर जाना भी नहीं चाहता था. तब उस आदमी ने गधे को उसी गड्ढे में जिन्दा गाड़ने का विचार किया, जिससे वह आसानी से मर सके. इसलिए वह उस गड्ढे में मिट्टी डालना आरंभ कर देता है, जैसे ही उस गधे पर मिट्टी गिरती है, वो वजन के कारण हिलाकर हटा देता है और उसी मिट्टी पर चढ़ जाता है. गधा प्रत्येक बार यही कार्य करता है, जब जब मिट्टी उसके ऊपर गिरती है. अंत में मिट्टी से गड्डा भर जाता है और वह गधा सुरक्षित बाहर आ गया.

मेहनत का फल

रचनाकार- ओजस्वी साहू, कक्षा सातवीं, सर्वोदय स्कूल धमतरी

एक गाँव में रामू नाम का एक किसान रहता था. उसकी पत्नी का नाम यशोदा था. उनकी एक बेटी थी जिसका नाम गीता था. रामू ने अपने खेत में सब्जी और धान बोई थी. रामू और उसकी पत्नी बहुत मेहनती थे. काम ज्यादा होने पर उसने अपनी बेटी से कहा- बेटी गीता, क्या तुम मेरी मदद करोगी? गीता अपने पिता की बात मान लेती हैं और अपने पिताजी के साथ खेतों में पानी डालने का काम करती है. कुछ दिनों बाद रामू के खेतों से तरह-तरह की सब्जियों की उपज हुई, धान की पैदावार भी बहुत अच्छी हुई. रामू को धान और सब्जियाँ बेचकर बहुत सारा पैसा मिला और उनकी गरीबी दूर हो गई. अब वे खुशी-खुशी रहने लगते हैं.

कर भला तो हो भला

रचनाकार- अयन तिवारी, कक्षा पांचवी, शासकीय प्राथमिक विद्यालय बेलगहना, कोटा

नगोई नामक गाँव में दो भाई रहते थे एक का नाम संजय था और दूसरे का रंजीत. एक बार दोनों के बीच विवाद हो गया. रंजीत का कहना था कि भलाई करने वालों का सदैव भला होता है, वही संजय का कहना था कि भलाई का जमाना नहीं रहा. उन्होंने शर्त लगाई कि शर्त हारने वाले को उसके पास जो भी है सब कुछ शर्त जीतने वाले को देना होगा दोनों पंचायत में गए वहां एक व्यक्ति से पूछा दो से पूछा सभी ने यही कहा कि भलाई का जमाना नहीं रहा. रंजीत के पास जो खेत का एक टुकड़ा था वह भी संजय के नाम हो गया. कुछ दिन बाद रंजीत के घर खाने को कुछ भी नहीं था. वह संजय के पास मदद माँगने गया और बोला कि मुझे 10 किलो चावल दे दो. संजय ने कहा अपनी एक आँख निकलवा दो बदले में 15 किलो चावल ले जाओ रंजीत मजबूर था उसने अपनी एक आँख निकलवा ली और 15 किलो चावल लेकर घर आया वह चावल कुछ दिनों तक चला फिर खत्म हो गया. रंजीत फिर संजय के पास गया फिर से अपनी एक आँख निकलवा दी और बदले में 15 किलो चावल ले आया. रंजीत घर आया तो पत्नी बच्चे रोने लगे फिर रंजीत ने अपनी पत्नी से कहा अब मैं भीख माँग लूँगा. तुम सुबह मुझे चौक छोड़ आया करना. मैं वहाँ भीख मांग लूँगा फिर शाम को ले आया करना. कुछ दिनों तक ऐसा चलता रहा. एक दिन रंजीत की पत्नी उसे लेने नहीं आई वह धीरे-धीरे चलने लगा, उसे रास्ते में एक पेड़ मिला वह पेड़ के नीचे बैठ गया. रात हो गई थी उस दिन भूतों का हिसाब करने वाला दिन था. वहाँ तीन भूत और एक उनका सरदार थे. पहले भूत ने कहा मैंने गाँव के दो भाई संजय और रंजीत में दो बार भला बुरा का तर्क करवा कर रंजीत को अंधा बनवा दिया भूतों के सरदार ने कहा वह अंधा ही रहेगा उसे क्या मालूम कि इस पेड़ की ओस लगाने से उसकी आँखें ठीक हो जाएंगी दूसरे भूत ने कहा की यहाँ की रानी की शादी होने वाली थी मैंने उसे गूंगा बना दिया भूतों का सरदार बोला बहुत खूब उसे क्या मालूम कि इस पेड़ की जड़ को पीसकर पी लेने से वह बोलने लगेगी. तीसरे भूत ने कहा मैंने पड़ोसी गाँव रत्नापुर मैं अकाल ला दिया है भूत के सरदार ने कहां बहुत अच्छा उन्हें क्या मालूम कि मिट्टी की 7 परत हटा दी जाएँ तो वहाँ का अकाल खत्म हो सकता है. रंजीत सब सुन रहा था अचानक तेज हवा चली और भूत गायब हो गए. सुबह हुई तो जल्दी से रंजीत ने पेड़ की ओस अपनी आँखों में लगाई और उसकी आँखें ठीक हो गईं. अब वह राजा के पास गया और रानी को उस पेड़ की जड़ को पीसकर पी लेने के लिए कहा रानी ने जब वह रस पिया तो वह बोलने लगी. राजा ने रंजीत को बहुत सारे पैसे दिए रहने के लिए घर दिया वह रत्नापुर गाँव गया वहाँ मिट्टी की 7 परते हटवा दीं तो वहाँ हरियाली छा गई. जब वह अपने गाँव पहुँचा तो उसे इतना अमीर देखकर उसके भाई के मन में लालच आ गया उसने उसने छोटे भाई से पूछा तुमने इतना पैसा कहाँ से पाया? छोटा भाई रंजीत दयालु था उसने सब कुछ बता दिया जब बड़ा भाई संजय उस पेड़ के पास गया तो भूत बात कर रहे थे कि उस दिन की बात किसी ने सुन ली थी वह इधर-उधर देखने लगे बड़ा भाई संजय उन्हें पेड़ पर बैठा दिखाई दिया उन्होंने उसे वहीं मार दिया.

जब जागो तभी सवेरा

रचनाकार- स्वाति मुकेश पांडेय

यह कहानी अत्यंत पिछड़े एवं दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र के एक गाँव की है. इस गाँव में कुछ गिने-चुने ही घर थे. गाँव का कोई भी व्यक्ति अधिक पढ़ा लिखा नहीं था, न ही गाँव में कोई पाठशाला चिकित्सालय या सरकारी कार्यालय था. गाँव के लोग अपनी मेहनत से इकट्ठा किए वनोपज, अनाज आदि को बेचने समीपस्थ कस्बे के बाजार जाया करते थे. इसी तरह गाँव के लोगों की आजीविका चल रही थी.

उसी गाँव में एक व्यक्ति मोहन भी रहता था. मोहन जब भी कस्बे जाता था,कस्बे के ऊँचे पक्के मकानों को देखकर बहुत प्रभावित होता था. हमेशा उसका ध्यान स्कूल पर टिक जाता था. उसे इस बात का पश्चाताप होता था कि उसने पढ़ाई क्यों नहीं की? अगर वह भी पढ़ा लिखा होता तो उसकी भी जीवनशैली कुछ अलग होती. वह अक्सर अपनी इस कमी को पूरा करने के विषय में सोचता था. एक बार वनोपज खरीदी बिक्री के बीच एक गुरुजी से मोहन का परिचय हो गया. कुछ बार की मुलाकातों से दोनों के बीच घनिष्ठता हो गई और मोहन ने अपनी दबी हुई इच्छा एक दिन गुरुजी के सामने अभिव्यक्त कर दी. गुरुजी यह जानकर बहुत खुश हुए कि आज भी मोहन के मन में. पढ़ने की इच्छा बनी हुई है.

गुरुजी ने मोहन से कहा कि तुम स्कूल में नहीं पढ़ पाए तो क्या हुआ तुम चाहो तो अभी भी पढ़ सकते हो, इसमें मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ. मोहन ने कहा अब मैं पढ़ कर क्या करूँगा गुरुजी? गुरुजी ने समझाते हुए कहा कि इसी प्रकार सोचते रहे तो तुम्हारी पीढ़ी का कोई व्यक्ति पढ़ाई नहीं कर पाएगा, किसी को तो शुरूआत करनी होगी गाँव में किसी व्यक्ति को तो अपनी सोच बदलनी होगी तभी गाँव की उन्नति होगी. मोहन गुरुजी की बातों से प्रभावित हुआ और वह समय निकालकर पढ़ने लगा. कुछ दिनों पश्चात मोहन पढ़ना, लिखनाऔर हिसाब किताब करना सीख गया.

मोहन की शिक्षा का लाभ गाँव के अन्य लोगों को भी मिलने लगा. गाँव में पंचायत के चुनाव में मोहन को सरपंच चुना गया. सरपंच बनने के बाद मोहन ने शिक्षा के महत्व को समझते हुए गाँव में सबसे पहले प्राथमिक विद्यालय खुलवाया. मोहन के किए गए प्रयास का लाभ मिला और गाँव के बच्चे पढ़ाई से जुड़ गए. प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम की कक्षाओं में जाकर गाँव के बड़े लोग भी साक्षर हो गए और आज पूरा गाँव में कोई भी निरक्षर नही है.

इस प्रकार मोहन के जागने से आज पूरा गाँव जाग चुका है. ठीक ही कहा गया है कि 'जब जागो तभी सवेरा'.

सहयोग

रचनाकार- अलका राठौर

एक बार कक्षा 5 में पढ़ने वाले सलीम, मीना, डेविड, रघु सभी ने मिलकर भिलाई के मैत्री बाग घूमने की योजना बनाई. सभी भिलाई जाने के लिए बिलासपुर रेल्वे स्टेशन पहुँच गए, ट्रेन आने मे थोड़ी देर थी. सभी प्लेटफॉर्म पर बैठे ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे. तभी एक 5 वर्षीय बच्चा आकर उनके सामने आ गया और उनसे खाने के लिए कुछ माँगने लगा. सभी उसको देख करुणा से भर गए, मीना ने उससे पूछा तुम्हारा नाम क्या है? बच्चे ने कहा मुन्ना.

तुम्हारे साथ कौन कौन है? सलीम ने पूछा.

मैं और मेरी माँ, मुन्ना बोला.

तुम्हारी माँ कहाँ है?

वो यहीं दूसरी जगह भीख माँग रही है.

तुम्हारी माँ को बुलाओ. रघु ने कहा.

चलो कहते हुए मुन्ना उन्हे अपनी माँ के पास ले आया.

सभी बच्चों ने मुन्ना की माँ से पूछा कि मुन्ना कौन से स्कूल मे पढ़ता है? माँ ने जवाब दिया कि मुन्ना किसी स्कूल में नहीं पढ़ता है. उसे स्कूल भेजने और पढ़ाई के लिए कॉपी, पेन, बैग, जूते आदि खरीदने के लिए पैसे नहीं है, इसलिए मुन्ना मेरे साथ ही रहता है, और माँगकर हम अपना गुज़ारा करते हैं. बच्चे चिंता मग्न हो गए. कुछ सोचकर पूछा, मुन्ना क्या तुम स्कूल जाना चाहोगे?, मुन्ना बोला हाँ मैं स्कूल जाऊँगा और मन लगाकर पढ़ूँगा भी.

फिर क्या था मीना ने अपने बैग से कॉपी निकाल कर मुन्ना को दे दीं. सलीम ने पेंसिलें दे दीं. डेविड ने अपने पुराने जूते और रघु ने अपना पुराना बैग दे दिया. अगले दिन से मुन्ना स्कूल जाने लगा और उसकी माँ रेल्वे स्टेशन पर झाड़ू लगाने का काम करने लगी. मुन्ना मन लगाकर पढ़ाई करने लगा और रोज स्कूल जाने लगा.

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