चित्र देख कर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको यह चित्र देख कर कहानी लिखने दी थी –

हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई हम नीचे प्रदर्शित कर रहे हैं

जिज्ञासा वर्मा, कक्षा नवमीं, क. उ. मा. वि. रतनपुर, कोटा, बिलासपुर द्वारा भेजी गई कहानी

कछुए की जीत

एक बहुत बड़ा जंगल था. जंगल में सभी जानवर रहते थे. उसी जंगल में खरगोश और कछुआ भी रहते थे, दोनों में अच्छी दोस्ती थी. दोनों साथ में खूब खेलते और मौज करते थे. खरगोश बहुत तेज दौड़ता था और कछुआ बहुत ही धीमी चाल से चलता था. खरगोश को अपनी तेज चाल का बहुत घमण्ड था और वह हमेशा कछुए का मजाक उड़ाया करता था. कछुआ, खरगोश की बातों का बुरा नहीं मानता था.

एक दिन खरगोश घमंड भरे स्वर में कछुए से बोला- 'क्या तुम मेरे साथ दौड़ लगाना चाहोगे.'

कछुआ बोला- 'मित्र खरगोश, अगर तुम दौड़ की प्रतियोगिता करना चाहते हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है.' तय किया गया कि दौड़ अगले दिन सुबह होगी.

अगले दिन खरगोश तथा कछुआ दोनों दौड़ के लिए तैयार होकर आ गए. जंगल के सभी जानवर भी दौड़ देखने आ गए. निश्चित हुआ कि जो पहले पहाड़ी पर पहुँचेगा उसे विजेता घोषित किया जाएगा. सभी को यही उम्मीद थी की खरगोश ही यह दौड़ जीतेगा.

भालू ने झण्डा हिलाकर दौड़ शुरू करवाई. खरगोश तेजी से भागते हुए बहुत आगे निकल गया. कछुआ धीरे -धीरे आगे बढ़ रहा था. खरगोश एक छायादार पेड़ के नीचे पहुँचा और पीछे मुड़कर देखा तो उसे कछुआ कहीं नहीं दिखा. ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी खरगोश ने सोचा कछुआ अभी बहुत पीछे है. क्यों न मैं थोड़ी देर विश्राम कर लूँ. यह सोचकर खरगोश ने जैसे ही आँखें बंद कीं, उसे नींद आ गई.

इधर कछुआ धीरे -धीरे आगे बढ़ रहा था. कुछ देर में कछुआ भी वहीँ पहुँच गया और फिर वह खरगोश से आगे निकल गया. बहुत देर बाद जब खरगोश की नींद खुली तब उसने यहाँ वहाँ देखा वह सोचने लगा कछुआ दिखाई नहीं दे रहा. उसने भागना शुरू किया आगे जाकर उसने देखा कि कछुआ पहाड़ी पर पहुँचने ही वाला है.

खरगोश अपनी पूरी ताकत लगाकर दौड़ा, पर उसके पहाड़ी पर पहुँचने के पहले ही कछुआ पहाड़ी पर पहुँच चुका था और इस प्रकार कछुए ने यह दौड़ जीत ली. जंगल के सभी जानवर यह देख हैरान रह गए. सभी कछुए को जीत की बधाई देने लगे.

खरगोश को अपनी हार पर बहुत पछतावा हुआ. खरगोश अपने अभिमान पर लज्जित हुआ और उसने कछुए से अपने व्यवहार के लिए क्षमा माँगी.

कु. डिलेश्वरी प्रजापति, कक्षा छटवीं, शा पू मा शा कालीपुर, प्रेमनगर, सूरजपुर द्वारा भेजी गई कहानी

कछुआ और खरगोश

खरगोश को अपनी तेज चाल पर बहुत घमंड था. जो भी मिलता उसे वह दौड़ लगाने की चुनौती देता. कछुए ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली.

जंगल के सभी जानवरों के समक्ष भालू ने झण्डा दिखाकर दौड़ शुरू कराई. खरगोश तेजी से भागा और काफी आगे जाने पर पीछे मुड़ कर देखा, कछुआ कहीं नज़र नहीं आया, उसने मन ही मन सोचा कछुए को यहाँ तक आने में बहुत समय लगेगा, मैं थोड़ी देर आराम कर लेता हूँ और वह एक पेड़ के नीचे लेट गया. लेटे-लेटे कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला. उधर कछुआ धीरे-धीरे, लगातार चलता रहा. बहुत देर बाद जब खरगोश की आंख खुली तो कछुआ लक्ष्य तक पहुँचने वाला था. खरगोश तेजी से भागा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कछुआ दौड़ जीत गया.

दौड़ में हारने के बाद खरगोश निराश हो गया, वह समझ गया कि अति आत्मविश्वास के कारण उसकी प्रतियोगिता में हार हुई है.

अगले दिन खरगोश ने फिर से कछुए को दौड़ की चुनौती दी.

कछुआ यह बात समझता था कि रास्ते में खरगोश के सो जाने के कारण उसकी जीत हुई है. दोबारा दौड़ हुई तो वह जीत नहीं सकता. क्योंकि खरगोश इस बार सोने वाला नहीं है.

खरगोश की चुनौती कछुए ने इस शर्त के साथ स्वीकार कर ली कि दौड़ का मार्ग कछुआ तय करेगा. खरगोश तैयार हो गया.

इस बार बंदर ने सीटी बजाकर दौड़ प्रारंभ कराई. खरगोश तेजी से तय स्थान की ओर भागा,उस रास्ते में एक नदी बहती थी. खरगोश को नदी किनारे पहुँचकर रुकना पड़ा.

कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ यहाँ पहुँचा है और आराम से नदी पार कर लक्ष्य तक पहुँच गया. कछुए ने दोबारा खरगोश को हरा दिया.

प्रतियोगिता के बाद कछुआ और खरगोश अच्छे दोस्त बन गए थे और दोनों एक दूूसरे की ताकत और कमजोरी समझने लगे थे.

संतोष कुमार कौशिक द्वारा भेजी गई कहानी

अनोखी दौड़

जंगल में सभी जानवर उत्सुक थे क्योंकि खरगोश और कछुआ की दौड़ होने वाली थी. भालू,बंदर, गिलहरी एवं अन्य जानवर भी वहाँ उपस्थित थे. बंदर ने खरगोश से कहा कि एक बार तुम दौड़ में हार चुके हो,फिर भी तुमने दौड़ने की शर्त लगाई है. इस बार तुम पुनः हारने वाले हो. खरगोश बोला- जब कछुए ने मुझे हराया था वह पुरानी बात है. उस दिन मैं दौड़ के बीच सो गया था. बंदर ने कहा वह तुम्हारी ही गलती थी पर दौड़ तो कछुआ ही जीता था. खरगोश कहने लगा-मैं नहीं मानता, दौड़ पुनः होनी चाहिए. इस बार दौड़ का रास्ता मैं तय करूँगा. कछुआ बोला ठीक है दोस्त हम फिर से दौड़ लगाएंगे.

भालू और गिलहरी को निर्णायक बनाया गया. दौड़ प्रारंभ हुई. इस बार खरगोश ने पहाड़ी वाला रास्ता चुना था. वह आराम से छलाँग लगाते हुए पहाड़ियों से निकल गया मगर कछुआ. बार-बार पहाड़ियों पर चढ़ता और फिसल जाता. मुश्किलों का सामना करते हुए कछुए ने दौड़ पूरी तो की परंतु वह दौड़ में बुरी तरह से हार गया.

खरगोश अपनी जीत पर खुशी से उछल रहा था तभी गिलहरी बोली, मुकाबला बराबरी का हुआ है एक दौड़ में तुम जीते और एक दौड़ में कछुआ. इसका मतलब है एक दौड़ और होनी चाहिए इस बार जो जीतेगा वही अंतिम विजेता कहलाएगा. इस बार दौड़ का रास्ता हम तय करेंगे. खरगोश को यह बात माननी पड़ी. भालू ने पुनः झंडा दिखाकर दौड़ प्रारंभ कराई. खरगोश तेजी से दौड़ता हुआ आगे निकल गया, मगर थोड़ी दूर जाने पर बड़ी नदी ने उसका रास्ता रोक लिया. खरगोश सोच में पड़ गया कि इस नदी को कैसे पार करूँ? तब तक कछुआ भी आ पहुँचा.

कछुए ने पूछा-क्या हुआ दोस्त?

खरगोश बोला- मुझे तैरना नहीं आता मैं कैसे नदी पार कर सकता हूँ?

कछुआ कहने लगा, चिंता मत करो, तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ मैं तुम्हें नदी पार करा दूँगा. खरगोश शर्मिंदा होकर सोचने लगा कि कितना बुरा हूँ. पिछली दौड़ में मैंने जान बूझकर पहाड़ी वाला रास्ता चुना था ताकि कछुआ हार जाए. आज कछुआ मुझे हरा सकता था लेकिन यह मेरी मदद कर रहा है. यह जानते हुए भी, कि ऐसा करने से वह हार जाएगा. दोनों ने नदी पार की और फिर खरगोश कछुए से बोला तुम बड़े नेकदिल हो मैं शर्मिंदा हूँ. प्रायश्चित के लिए मैं तुम्हें अपने पीठ पर बिठाकर दौड़ लगाता हूँ. इस तरह से यह दौड़ हम दोनों एकसाथ जीत सकते हैं. खरगोश ने कछुए को अपनी पीठ पर बिठाकर दौड़ पूरी की.

सभी जानवरों ने इस अनोखी दौड़ की बहुत प्रशंसा की.

यशवंत कुमार चौधरी द्वारा भेजी गई कहानी

एक दिन जंगल में भालू, खरगोश, कछुआ,बंदर, गिलहरी पेड़ों के आस-पास खेल रहे थे. खरगोश कछुए का मजाक उड़ा रहा था. खरगोश अपने आपको बेहतर और कछुए को बहुत तुच्छ समझता था. खरगोश को अपनी तेज दौड़ने की क्षमता पर बहुत अधिक घमण्ड था उसने कछुए को नीचा दिखाने के लिए दौड़ प्रतियोगिता की चुनौती दी. इस दौड़ प्रतियोगिता को कछुए ने अपने लिए एक अवसर समझा.

खरगोश और कछुए के बीच मुकाबला हुआ. मुकाबला एक निर्धारित स्थान तक जल्दी पहुँचने का था. इस मुकाबले का निर्णायक भालू को बनाया गया. भालू ने झण्डा दिखाकर दौड़ शुरू कराई.

दौड़ प्रारंभ होते ही खरगोश आधे रास्ते तक तेज दौड़कर एक पेड़ के नीचे आराम फरमाने लगा उसने सोचा कि कछुआ यहाँ तक आ जाए तो उसे चिढ़ाकर मैं फिर आगे बढूँगा. कछुए को चिढ़ाने में बहुत मजा आएगा. दूसरी ओर कछुआ निरंतर चलता रहा और धीरे धीरे चलकर ही वह खरगोश से आगे निकल गया उसने देखा कि खरगोश पेड़ की छाँव में गहरी नींद में सोया हुआ था.

इस तरह कछुआ निरंतर प्रयास से मंजिल तक पहले पहुँच गया और उसे विजयश्री प्राप्त हुई.

जब तक खरगोश जागा तब तक बहुत देर हो चुकी थी. उसका घमण्ड चूरचूर हो गया. अब उसे एहसास हुआ कि सभी की अपनी अपनी क्षमता होती है और सभी का सम्मान करना आवश्यक है. कोई भी छोटा बड़ा नही होता. जीत के लिए सतत् प्रयास की जरूरत होती है. जो सही दिशा में लगन के साथ कार्य करता है वह जरूर सफल होता है.

अगले अंक की कहानी हेतु चित्र

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