कहानियाँ
पंचतंत्र की कथाएँ- आलसी ब्राह्मण
बहुत समय की बात है. एक गांव में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था. उसकी ज़िंदगी में बेहद ख़ुशहाल थी. उसके पास भगवान का दिया सब कुछ था. सुंदर-सुशील पत्नी, होशियार बच्चे, खेत-ज़मीन-पैसे थे. उसकी ज़मीन भी बेहद उपजाऊ थी, जिसमें वो जो चाहे फसल उगा सकता था. लेकिन एक समस्या थी कि वो ख़ुद बहुत ही ज़्यादा आलसी था. कभी काम नहीं करता था. उसकी पत्नी उसे समझा-समझा कर थक गई थी कि अपना काम ख़ुद करो, खेत पर जाकर देखो, लेकिन वो कभी काम नहीं करता था. वो कहता, 'मैं कभी काम नहीं करूंगा.' उसकी पत्नी उसके आलस्य से बेहद परेशान रहती थी, लेकिन वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती थी. एक दिन एक साधु ब्राह्मण के घर आया और ब्राह्मण ने उसका ख़ूब आदर-सत्कार किया. ख़ुश होकर सम्मानपूर्वक उसकी सेवा की. साधु ब्राह्मण की सेवा से बेहद प्रसन्न हुआ और ख़ुश होकर साधु ने कहा कि 'मैं तुम्हारे सम्मान व आदर से बेहद ख़ुश हूं, तुम कोई वरदान मांगो.' ब्राह्मण को तो मुंहमांगी मुराद मिल गई. उसने कहा, 'बाबा, कोई ऐसा वरदान दो कि मुझे ख़ुद कभी कोई काम न करना पड़े. आप मुझे कोई ऐसा आदमी दे दो, जो मेरे सारे काम कर दिया करे.'
बाबा ने कहा, 'ठीक है, ऐसा ही होगा, लेकिन ध्यान रहे, तुम्हारे पास इतना काम होना चाहिए कि तुम उसे हमेशा व्यस्त रख सको.' यह कहकर बाबा चले गए और एक बड़ा-सा राक्षसनुमा जिन्न प्रकट हुआ. वो कहने लगा, 'मालिक, मुझे कोई काम दो, मुझे काम चाहिए.'
ब्राह्मण उसे देखकर पहले तो थोड़ा डर गया और सोचने लगा, तभी जिन्न बोला, 'जल्दी काम दो वरना मैं तुम्हें खा जाऊंगा.'
ब्राह्मण ने कहा, 'जाओ और जाकर खेत में पानी डालो.' यह सुनकर जिन्न तुरंत गायब हो गया और ब्राह्मण ने राहत की सांस ली और अपनी पत्नी से पानी मांगकर पीने लगा. लेकिन जिन्न कुछ ही देर में वापस आ गया और बोला, 'सारा काम हो गया, अब और काम दो.'
ब्राह्मण घबरा गया और बोला कि अब तुम आराम करो, बाकी काम कल करना. जिन्न बोला, 'नहीं, मुझे काम चाहिए, वरना मैं तुम्हें खा जाऊंगा.'
ब्राह्मण सोचने लगा और बोला,'तो जाकर खेत जोत लो, इसमें तुम्हें पूरी रात लग जाएगी.' जिन्न गायब हो गया. आलसी ब्राह्मण सोचने लगा कि मैं तो बड़ा चतुर हूं. वो अब खाना खाने बैठ गया. वो अपनी पत्नी से बोला, 'अब मुझे कोई काम नहीं करना पड़ेगा, अब तो ज़िंदगीभर का आराम हो गया.' ब्राह्मण की पत्नी सोचने लगी कि कितना ग़लत सोच रहे हैं उसके पति. इसी बीच वो जिन्न वापस आ गया और बोला, 'काम दो, मेरा काम हो गया. जल्दी दो, वरना मैं तुम्हें खा जाऊंगा.'
ब्राह्मण सोचने लगा कि अब तो उसके पास कोई काम नहीं बचा. अब क्या होगा? इसी बीच ब्राह्मण की पत्नी बोली, 'सुनिए, मैं इसे कोई काम दे सकती हूं क्या?'
ब्राह्मण ने कहा, 'दे तो सकती हो, लेकिन तुम क्या काम दोगी?'
ब्राह्मण की पत्नी ने कहा, 'आप चिंता मत करो. वो मैं देख लूंगी.'
वो जिन्न से मुखातिब होकर बोली, 'तुम बाहर जाकर हमारे कुत्ते मोती की पूंछ सीधी कर दो. ध्यान रहे, पूंछ पूरी तरह से सीधी हो जानी चाहिए.'
जिन्न चला गया. उसके जाते ही ब्राह्मण की पत्नी ने कहा, 'देखा आपने कि आलस कितना ख़तरनाक हो सकता है. पहले आपको काम करना पसंद नहीं था और अब आपको अपनी जान बचाने के लिए सोचना पड़ रहा कि उसे क्या काम दें.'
ब्राह्मण को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वो बोला, 'तुम सही कह रही हो, अब मैं कभी आलस नहीं करूंगा, लेकिन अब मुझे डर इस बात का है कि इसे आगे क्या काम देंगे, यह मोती की पूंछ सीधी करके आता ही होगा. मुझे बहुत डर लग रहा है. हमारी जान पर बन आई अब तो. यह हमें मार डालेगा.'
ब्राह्मण की पत्नी हंसने लगी और बोली, 'डरने की बात नहीं, चिंता मत करो, वो कभी भी मोती की पूंछ सीधी नहीं कर पाएगा.'
वहां जिन्न लाख कोशिशों के बाद भी मोती की पूंछ सीधी नहीं कर पाया. पूंछ छोड़ने के बाद फिर टेढ़ी हो जाती थी. रातभर वो यही करता रहा.
ब्राह्मण की पत्नी ने कहा, 'अब आप मुझसे वादा करो कि कभी आलस नहीं करोगे और अपना काम ख़ुद करोगे.'
ब्राह्मण ने पत्नी से वादा किया और दोनों चैन से सो गए.
अगली सुबह ब्राह्मण खेत जाने के लिए घर से निकला, तो देखा जिन्न मोती की पूंछ ही सीधी कर रहा था. उसने जिन्न को छेड़ते हुए पूछा, 'क्या हुआ, अब तक काम पूरा नहीं हुआ क्या? जल्दी करो, मेरे पास तुम्हारे लिए और भी काम हैं.'
जिन्न बोला, 'मालिक मैं जल्द ही यह काम पूरा कर लूंगा.'
ब्राह्मण उसकी बात सुनकर हंसते-हंसते खेत पर काम करने चला गया और उसके बाद उसने आलस हमेशा के लिए त्याग दिया.
कौए की चालाकी
रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान
एक रोज कौए को पता चला कि कोयल उसके घोंसले में अपना अंडा दे कर चली जाती है. कौआ कोयल के अंडे को अपना अंडा समझ कर उन्हे सेते और बच्चों को पालते है. जब कोयल के बच्चे बड़े हो कर उड़ने लायक हो जाते है तो कोयल के बच्चे अपने मॉं बाप के पास चले जाते है. इस सच्चाई को जानकर सारे कौओं को बडी आत्म ग्लानी हुई. एक दिन कौए ने कोयल को अपने घर बुला कर कहा कोयल बहन अब तुम हमें मूर्ख बना कर अपने अंडे को हमसे नहीं सेवा सकती हो आज से अगर तुमने अपना अंडा हमारे घोंसले में दिया तो मैं तुम्हारे अंडे को जमीन पर गिरा कर नष्ट कर दूँगा. इसलिए कान खोल कर सुन लो आज से हमारे घोंसले में अपना अंडा देने की कोशिश मत करना वरना तुम बहुत पछताओगी. तभी कोयल बोल पड़ी,इस बात का तुम्हें कैसे पता चली कि मैं तुम्हारे घोसले में अंडा देती हूँ. इतना सुन कर कौआ बोला तुम्हें हमारे घोंसले में से अंडा देते सारे पक्षियों ने देखा है सारे पक्षियों की बात क्या झूठी है. 'हाँ बिलकुल झूठी है. 'कोयल इतना कह कर वहाँ से चली गई.
कुछ दिनों के बाद कोयल के अंडे देने का वक्त आ गया. कोयल परेशान हो गई कि मैं अंडा दूँ तो कहाँ दूँ. उसे कौए के घोसले में अंडा देना नामुमकिन लग रहा था. क्योंकि कौए ने बिरादरी के लोगों को कोयल के अंडे देने की बात बता दी थी. कोयल चोरी छुपे जैसे ही अपना अंडा कौए के घोंसले में देती वैसे ही कौआ उन्हें पहचान कर जमीन पर गिरा कर नष्ट कर देता. सारे कोयल परेशान हो गए. उन्हें अपना अंडा देने की चिन्ता सताने लगी. एक रोज सारे कोयलो ने फैसला किया कि अब हमें अपना घोंसला बना कर उसमें अपना अंडा देना पडे़गा और सेना भी पड़ेगा.
उस दिन से कोयल खुद अपना घोंसला बना कर उसमें अंडा देने लगीं और उसे सेने से ले कर बच्चों को पालने का काम भी करने लगीं. कौए की चालाकी के कारण सारे कौओं को कोयल के अंडे बच्चों को पालने के काम से हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया.
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चूहा, बतख और मेंढक
रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान
एक नदी के तट पर एक चूहा एक बतख ओर एक मेंढक रहते थे. तीनों में एक
गहरी दोस्ती थी. तीनों एक साथ रहते और खाते-पीते थें.
एक रोज नदी तट पर कहीं से घुमता हुआ एक गेहुअन साँप चला आया.. साँप
को देख कर चूहा बतख और मेढक साँप से पूछ पड तुम यहाँ किस लिए आए
हो? तुम यहाँ से फौरन चले जाओ हम यहाँ पर किसी को रहने नहीं देते
हैं. चूहा बतख और मेढ़क की बात सुन कर साँप बोला मैं तुम लोगो
का कुछ नहीं बिगडूंगा. मुझे भी तुम लोग अपना दोस्त बना लो..
नहीं-नहीं हम तुम्हारे जैसे जहरीले साँप को अपना दोस्त नहीं बना सकते
. तुम यहाँ से जल्दी चले जाओ.. तीनों दोस्तों एक स्वर में साँप से
बोल पडे.. साँप बोला तुम लोग मुझे यहाँ कुछ दिन रहने दो अगर मैं
तुम लोगों के साथ कोई धोखेबाजी या बदसलूकी की तो मुझे
यहाँ कतई रहने मत देना.. साँप की बात तीनों ने मान ली.. साँप भी
नदी तट पर रहने लगा..
एक रोज मेंढक नदी तट पर घुम-घुम कर कीट पतंगो
को पकड कर खा रहा था उसी वक्त साँप वहाँ दौडता हुआ आया और
तुरंत मेंढक को अपने मुँह में पकड़ लिया. मेंढक बोला साँप भाई यह
क्या कर रहे हो? हमें छोड दो.. साँप बोला मुझे जोर की भूख लगी
है मैं तुम्हें खाऊँगा. इतना सुनते ही मेंढक के होश उड गए. वह
अपने दोस्त चूहा और बतख को आवाज दे कर बचाओ बचाओ चिल्लाने
लगा. तभी वहाँ चूहा और बतख आ पहुंचे और साँप से बोल पड़े तुम
हमारे दोस्त मेंढक को छोड दो.. साँप बोला मैं इसे नहीं छोड़ूँगा. मैं इसे खा कर अपनी भूख मिटाऊँगा. मैं तुम दोनों को
भी बारी-बारी से खा जाऊँगा.. साँप भाई क्या अपना वादा भूल गए?
तुमने कहा था न मैं तुम लोगों के साथ क़ोई धोखेबाजी या बदसलूकी की तो मुझे यहाँ कतई रहने मत देना.. हाँ कहा था. मगर सब
झूठ बोला था.. वो तुम लोगों को मूर्ख बनाने के लिए कहा था.
बतख साँप को अपनी बातों में उलझाए रहा.. इतने में चूहा अपने दोस्त नेउर को बुला लाया. नेउर साँप की गर्दन पकड़ कर बोला अब मैं तुम्हें जिन्दा नहीं छोड़ूँगा.. नेउर व्दारा साँप की गरदन पकड़ते ही साँप का मुँह खुल गया और मेंढक साँप के मुँह से बाहर आ गया और बोला नेउर भाई इस धूर्त और चालबाज को जिन्दा मत छोडना इसे जान से मार डालो.. नेउर ने साँप का गला काट कर धड से अलग कर के उसे मार डाला.. साँप के मरते ही चूहा बतख और मेंढक नेउर की जय-जयकार करने लगें. फिर तीनों दोस्तों ने निश्चय किया कि आज के बाद हम किसी भी अजनबी पर तुरंत
विश्वास नहीं करेंगे.. यह कहते हुए तीनों
दोस्त अपने-अपने घर की ओर चल दिए.
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जादुई ताला
रचनाकार- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान
एक लकड़हारा रोज जंगल में जाता और वहाँ सुखी लकड़ियों को लाता फिर बाजार में बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट भरता था. लकड़हारा गरीब था ओर एक छोटी-सी मढ़ई में अपनी पत्नी और बेटी बीनू के साथ रहता था. एक रोज लकड़हारा
जंगल में दूर तक चला गया. तभी उसकी नजर एक सुन्दर सी महल पर जा पड़ी. लकड़हारा जंगल में महल को देख कर हैरान रह गया. वह सोचने लगा इस जंगल में इस महल को किसने बनवाया है और इस महल में कौन रहता होगा. लकड़हारा महल को देखने के लिए उसकी ओर बढ़ने लगा.तभी महल से आवाज आई रूक जाओ लकड़हारे अगर तुमने महल में घुसने की कोशिश की तो मैं तुम्हें भी इस महल में कैद कर दूँगा.महल से आती आवाज सुन कर लकड़हारा बोला बाबा मैं एक गरीब लकड़हारा हूँ.जंगल की सुखी लकड़ियों बेच कर अपना पेट भरता हूँ' क्या आप हमारी मदद नहीं कर सकते है?
लकड़हारे की बात सुनकर महल के अन्दर से एक बूढ़ा व्यक्ति बाहर आ कर लकड़हारे से बोला बेटा मैं तुम्हारी मीठी बातों से बहुत खुश हूँ. बताओ तुम्हें क्या चाहिए. मैं एक
जादूगर हूँ और तुम्हारी हर तरह की मदद कर सकता हूँ. बूढ़े जादूगर की बात सुन कर लकड़हारा बोला बाबा आप हमारी गरीबी
दूर कर दीजिए. लकड़हारे की बात सुन कर बूढ़े जादूगर ने कहा बेटा महल के अन्दर जो सामने का कमरा दिखाई दे रहा है ना उसी
कमरे में ढ़ेर सारे सोने चाँदी के सिक्के और हीरे जवाहरात पड़े हुए हैं.. तुम कमरे में जा कर जितना चाहो सोने चाँदी के सिक्के और हीरे जवाहरात ले जा सकते हो. उस कमरे के बाहर दरवाज़े पर एक ताला लगा हुआ है. वह ताला जादुई है वह चाभी से नहीं खुलता है उसे खोलने के लिए तुम्हें तीन बार ताले पर मुक्के से मार कर तीन बार कहना होगा खुल जा ताला खुल जा ताला खुल जा ताला कहना होगा.. अब तुम जाओ कमरे का ताला खोल कर जितना चाहो सोने चाँदी के सिक्के और हीरे जवाहरात ले जा सकते हो. लकड़हारा बूढ़े जादूगर से इजाजत पा कर महल में गया और जादूई ताला खोल कर एक बोरी में सोने चाँदी के सिक्के और जवाहरात भर कर जैसे ही कमरे से बाहर आया वैसे ही कमरा और ताला अपने आप बंद हो गया..
लकड़हारा जब वापस घर जाने लगा तो बूढ़े जादूगर ने कहा बेटा अब यहाँ कभी मत आना अगर
दोबारा दौलत की लालच में यहाँ आए तो मैं तुम्हे भी अपने कैद खाने में बन्द कर दूँगा. बूढे जादूगर की बात सुनकर लकड़हारा घर की ओर चल दिया. ढ़ेर सारी दौलत पा कर
लकड़हारे की सारी गरीबी दूर हो गई और वह सुख से अपना जीवन व्यतित करने लगा.
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वन की देवी
रचनाकार- सुरेखा नवरत्न
एक गाँव में सोनू और मोनू दो मित्र रहते थे. दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे. साथ- साथ खेलते थे, कहीं भी जाते तो साथ ही जाते थे.
एक दिन दोनों मित्र घुमने निकले, चलते-चलते वे जंगल की तरफ बहुत दूर निकल गए. रास्ता सुनसान था, न कोई इंसान न कोई जानवर. झिंगुर और कीड़े- मकोड़ों की आवाजें सुनाई दे रही थी. तभी जंगल में अचानक किसी की रोने की आवाज सुनाई दी. पास जाकर उन्होंने देखा कि एक सुंदर सी लड़की अपने मुंह पर हाथ रख कर जोर - जोर से रो रही है.
मोनू ने उनसे पूंछा- आप क्यों रो रही है ? इस सुनसान जंगल में आप अकेले क्यों रो रहीं हैं ?
लड़की ने कोई उत्तर नहीं दिया.
इस बार मोनू ने उसे चुप कराते हुए कहा- आपको क्या तकलीफ है? कृपा करके हमें बताइये, हम आपकी मदद करना चाहते हैं.
लड़की ने कहा जाओ! बच्चों घर लौट जाओ! तुम लोग अभी बच्चे हो, मेरी मदद नहीं कर सकोगे. सोनू और मोनू कुछ देर वही खड़े होकर सोचने लगे, हमें इनसे क्या मतलब? हम लौट जाते हैं.
फिर सोनू और मोनू सोचने लगे- नहीं! नहीं! हमें इस तरह से किसी मुसीबत में फंसे इंसान को छोड़कर नहीं जाना चाहिए.
सोनू और मोनू - आप हमें जब तक नहीं बताएंगे, तब तक हम यहाँ से घर वापस नहीं जाएंगे. कृपया हमें बताइये, आप क्यों रो रही है ?
लड़की ने कहा - ठीक है, चलो मेरे साथ!
ऐसा कहकर, सोनू और मोनू को एक कुएं के पास ले आई और कहा - इस कुएं में मेरी बेशकीमती हीरे की अंगूठी गिर गई है और मैं उसे निकाल नहीं पा रही हूँ. अगर अंगूठी के बिना मैं घर जाऊंगी तो मेरी माँ मुझे बहुत मारेगी. कूंआ बहुत गहरा और अंधेरा है.
सोनू ने कहा - आप चुप हो जाइए हम आपकी मदद करेंगे. ऐसा कहकर सोनू और मोनू झट से एक पेड़ से लिपटा हुआ बेल लेकर आए. बेल को कुएं में लगे लोहे के राड से बांधकर -दोनों एक के बाद एक नीचे उतर गए परंतु उन्हें कोई भी अंगूठी दिखाई नहीं दिया.
अंधेरे कुएं में दोनों का दम घुटने लगा. सोनू-और मोनू को कुछ समझ नहीं आ रहा था. दोनों हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करने लगे. तभी वही लड़की अचानक कुएं के अंदर आ जाती है और वनदेवी के रुप में प्रकट होकर कहती है - सोनू और मोनू, तुम दोनों बहुत नेकदिल और ईमानदार हो. मैं वन की देवी हूँ, मैं तुम दोनों से बहुत प्रसन्न हूँ.
वनदेवी दोनों को एक- एक हीरे की अंगूठी देती है और कहती है- जाओ! इस अंगूठी को अपने उंगली में धारण करोगे, तो तुम दोनों को अद्भुत शक्ति प्राप्त होगी, और जो भी लाचार, असहाय है दुनिया में उन सबकी मदद करो.
ऐसा कहते ही वह अंतर्ध्यान हो जाती है, दोनों मित्र घर लौट आते हैं और उस दिन से लोगों की मदद करने लगते हैं.
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औलाद
रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू
शादी के 25 साल बाद भी संतान न होने का दर्द सह रहे राजेश और मीना; लोगों के तानों और पारिवारिक कलह से तंग आकर गाँव से दूर शहर में बसने का निर्णय लेते हैं.
शहर में लोगों से दूर एकांत जगह में राजेश और मीना किराए के घर में रहने लगते हैं.
संतान प्राप्ति हेतु वे शहर में डॉक्टर से इलाज कराने लगते है, समय धीरे-धीरे बीतने लगता है और वो खुशियों वाला दिन आ ही जाता है . जब राजेश और मीना के घर आँगन बेटे की किलकारी से गूँज उठती है. वे बेटे का सुंदर सा नाम सूरज रखते हैं.
सूरज माँ-बाप के लिए आँखों का तारा था. उसे वे खूब लाड - प्यार करते और अपने नजरों से कभी दूर न होने देते. मानो माँ बाप के लिए सूरज ही जिंदगी थी.
सूरज धीरे-धीरे बड़ा होने लगा प्राथमिक शिक्षा पास के स्कूल में ग्रहण कर उच्च शिक्षा हेतु शहर जाने लगा. सूरज पढ़ाई में अव्वल था. उसने गणित विषय लेकर आगे की पढ़ाई की.
इंजीनियर बनने का ख्वाब लिए सूरज इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए विदेश जाने की बात कहने लगता हैं. सूरज की इन बातों को सुन और बेटे से दूर होने की बात सोच राजेश और मीना की आँखों में आंसू आ जाते है.
पर बेटे की इंजीनियर बनने कि सपने और उज्जवल भविष्य की कामना के साथ सूरज को नम आँखों से विदेश जाने की इजाजत दे देते हैं.
शहरी माहौल में पले-बढ़े सूरज को विदेश में सामंजस्य बिठाने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. सूरज खूब मन लगाकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने लगा. पढा़ई पूरी होने पर सूरज को एक अच्छी सी कंपनी में नौकरी लग जाती हैं.
सूरज जिस कंपनी में नौकरी कर रहा था उसी कंपनी में इंजीनियरिंग की नौकरी कर रही एक लड़की से सूरज शादी भी कर लेता है.
अपनी नौकरी और अपने परिवार में मस्त सूरज विदेशी रंग में इतना रंग गया था कि उसे अपने माँ-बाप की फिकर ही नहीं थी.
सूरज विदेश आकर मानो अपने माँ बाप को भूल ही गया. ना नौकरी लगने की बात बतायी और ना ही शादी की बात.
उधर बूढ़े हो चुके माँ बाप के लिए सूरज मानो सूरज की ही तरह बहुत दूर हो गया था. राजेश और मीना उसके वापस आने की बेसब्री से प्रतीक्षा करते रहते .
औलाद होते हुए भी बेऔलाद की तरह दिन हीन जिंदगी जीने को मजबूर होते है .
एक दिन सूरज अपनी पत्नी के साथ ऑफिस जा रहा था तभी सड़क दुर्घटना में उसकी पत्नी की मौत हो जाती हैं. सूरज रोने लगता है, चिल्लाने लगता है. सूरज के लिए उसकी दुनिया मानो उजड़ सी गई.
अब सूरज को अपना वतन और माँ-बाप याद आने लगते है. सूरज अपने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ अपने घर वापस लौट आता है.
सूरज जब वापस अपने घर आता है तो देखता है की उसका घर जर्जर खंडहर और वीरान ताला लगा देख चौक जाता हैं.
सूरज को घर वापस आने मे बहुत देर हो चुकी थी. पड़ोसी ने बताया की बुजुर्ग माँ बाप ने अपने बेटे के इंतजार में प्राण त्याग दिए पर उनका इकलौता बेटा विदेश से लौटकर नहीं आया और ना कभी उनका हाल चाल पूछा. बुजुर्ग माँ-बाप को स्वर्ग सिधारे 10 साल हो गए है.
पड़ोसी की बात सुन सूरज बहुत दुखी होता है, रोने और पछताने लगता हैं. फिर अपना देश छोड़ कर विदेश न जाने का प्रण करता है.
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परियों के देश में
रचनाकार- सुरेखा नवरत्न
गर्मी के दिन थे, भीषण गर्मी पड़ने लगी थी. आज मोनू ने शाम का खाना जल्दी ही खा लिया और दरी उठाकर वह अपने छत पर सोने चला गया. अंधेरी रात थी, आसमान में असंख्य तारे टिमटिमा रहे थे, मोनू तारों को देख रहा था. कोई छोटा,कोई बड़ा, तो कोई बहुत चमकीला. देखते ही देखते कुछ ही समय में सोने चांदी से जड़ा हुआ एक उड़नखटोला नीचे आया और मोनू को उड़ा कर ले गया. आसमान में उड़ते- उड़ते वह एक अनोखी दुनिया में चला गया. जहाँ सभी लोगों के पँख लगे हुए थे, लेकिन मजे की बात ये थी कि, यहाँ मोनू के सभी दोस्त रिंकू, पिंकू, टिंकू पहले से ही मौजूद थे. रिंकू, मोनू को देखते ही अपने सुनहरे पंखों से उड़ते हुए उसके पास आया, और बोला-
अरे! मोनू तुम आ गए! सफ़र में तुम थक गए होंगे, चलो पहले हमारे साथ स्नान कर लो. रिंकू उसे एक बहुत बड़े खूबसूरत स्वीमिंग पुल में ले गया. मोनू ने देखा - अरे ये तो चाकलेट से बना हुआ है, चाकलेट वाला पानी चाकलेट की नाव. मोनू ने खूब मस्ती की, जी भर कर चाकलेट खाए.
नहाने के बाद सभी दोस्त मिलकर खाना खाने चले गए. वहाँ एक परी आई उसनें अपनी छड़ी घुमाई, तो पूरा टेबल मिठाईयों से भर गया. रसगुल्ले, जलेबी, चमचम तरह -तरह की मिठाईयाँ. अब सभी दोस्तों ने जी भरकर मिठाईयां भी खा ली. तभी एक बहुत खूबसूरत परी एक सुनहरे पँख लेकर आई और मोनू के हाथों में लगा दिया. हमारे दुनिया में जो भी आता है,उसे यह भेंट दिया जाता है. देखो एक -एक पँख मैंने तुम्हारे दोस्तों को भी दिया है. मोनू, अब जब भी तुम्हें परियों के देश में आने का मन करे तो उड़ते हुए आ जाना. तभी अचानक मोनू के हाथों को जोर से मच्छर ने काटा, मोनू ने जोर से अपने हाथों को झटककर मच्छर को मारना चाहा तो उसे लगा कि उसका पँख टूटने वाला है. मोनू जोर- जोर से चिल्लाने लगा अरे! मेरा पँख मेरा पँख, कहाँ चला गया मेरा पंख और वह उठकर बैठ गया. मम्मी भी उसके साथ जाग गई, क्या हुआ मोनू? अभी आधी रात है बेटा चलो सो जाओ! मोनू समझ गया कि वह सपने में परियों की देश में चला गया था. मोनू मम्मी के आँचल से अपना चेहरा ढंककर फिर से सो गया.
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