छत्तीसगढ़ी बालगीत
पंछी की बोली
रचनाकार- लोकेश्वरी कश्यप
कउआं बोले कांव-कांव,
बइठ पेड़ के छाँव-छाँव.
कोयल बोले कुहू-कुहू,
गुरतूर बोली सबला देहु.
पपीहा बोले हे पी-पी,
अपन जिनगी ल सुग्घर जी.
मिट्ठू बोलत हे टें-टें,
राम के नाम तय हर ले.
कुकरा बोलय कुकड़ूकू,
शुभ सन्देश सबला देहु.
मेचका बोलत हे टर्र-टर्र,
सबके दुख ल तय ह हर.
परेवा बोलय गुटूरगू-गुटूरगू,
चारी चुगली तुमन झन करहु.
चिरई बोलत हे ची ची ची,
सुघर पानी सब झन पी.
मजूर नाचत हे पंख ल खोल,
झूठ कभू तय हर झन बोल.
पानी बरसय झर-झर-झर,
ढेकी म तय हर धान ल छर.
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सुरता
रचनाकार- तुलस चंद्राकर
मया-पिरित के धार बोहावत
घेरी- बेरी गोहरांव रे,
गुरतुर बोली -भाखा जेखर
अब्बड़ सिधवा मोर गांव रे .
जेकर चिन्हारी धुर्रा-माटी
चिखला, छानही - परवा हे,
डोली - धनहा, मुही- पार अउ
तरिया, डबरा, नरवा हे.
अंतस ल जुड़ाथे जेहां
रुखराई के छांव रे,
गुरतुर बोली - भाखा जेखर
अबड़ सिधवा मोर गांव रे.
अंगना म अटकन - बटकन
रेंहचुल, भंवरा- बांटी हे,
गिल्ली- डंडा अउ फूगड़ी म
लइका अड़बड़ खांटी हे.
बरसत पानी के रगड़ म
जिहां बोहाथे नाव रे,
गुरतुर बोली - भाखा जेखर
अबड़ सिधवा मोर गांव रे
होत बिहनिया चले नगरिहा
जांगर टोर कमावत हे,
खेत में चटनी -बासी के संग
ज़िनगी ल अपन चलावत हे.
धरती दाई के जतन करइया
जेखर पखारंव पांव रे,
गुरतुर बोली -भाखा जेखर
अब्बड़ सिधवा मोर गांव रे.
मोर कुरिया म किसम-किसम के
तिहार बार मनावत हें,
ठेठरी- खुरमी, बरा - सोंहारी
खावत अउ खवात हें.
कोरा हे मोर सरग बरोबर
लेथे दुनिया नाव रे,
गुरतुर बोली -भाखा जेखर
अब्बड़ सिधवा मोर गांव रे.
निबल - पातर मनखे के संग
हावय मोर मितानी,
खोरबहरा अउ मंगलू, चैतू
करथे इहां सियानी.
'सुरता' करके दया - मया के
करथे कउवां कांव रे,
गुरतुर बोली -भाखा जेखर
अब्बड़ सिधवा मोर गांव रे.
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छत्तीसगढ़ के छत्तीस भाजी
रचनाकार- लक्ष्मी तिवारी
हमन छत्तीसगढ़िहा
कहाथन सबले बड़िहा
राजी रहिथन जी हमन भाजी म
नून चटनी अउ बोरे बासी म
नून चटनी अउ बोरे बासी म.
छत्तीसगढ़ के छत्तीस भाजी के बखान का करौ.
जम्मो भाजी म बढ़ ताकत हे बखान का करौ.
हमर छत्तीस भाजी के नाव बतावव कले चुप सुन.
मनेच मन म गात रहिबे भारत भुइयां के गुन.
आमारी भाजी चेज भाजी, भाजी तिवरा के साग.
चना भाजी लाल भाजी महि म खेड़हा के सुवाद.
गोदली भाजी बोहार भाजी मुसकेनी अउ पटवा.
कजरा भाजी मछरिया भाजी अउ चनौरी भाते सबला बढ़िया.
तीनपनिया, कुरमा, मुरई, अउ चौराई भाजी.
शुख दुख सब खा थन भैया रईथन सब झन राजी.
करमतत्ता, कांदा, अउ मखना, चुन चुनिया तै खाले.
पुतका, पालक, बर्रे,भाजी, तन ल ताकत देथे.
गोभी, लहसुवा,सरसो भाजी तन बर हे बरदान.
कुसुम, चरोटा, चिरचिरा भाजी हवय दवई समान.
आलू, भथूवा, उरला, गुडरु, भाजी के ताकत हवय अपार.
मुनगा, भाजी, म हमर दिदी बर शक्ति के भंडार.
छत्तीसगढ़ म छत्तीस भाजी हमर बर बरदान हे.
जेकर कोला बारी म उपजथे, हमर किसान भुइयां के भगवान ये.
हरछठ पूजा तीजा तिहार म भाजी के हे बड़मान.
एकरच बर तो छत्तीसगढ़ ह जग म हे महान.
जय छत्तीसगढ़ जय भारत
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गुहार
रचनाकार- सीमा यादव
जम्मो मनखे ल गुहार लगाके कहत हव,
थोकिन दया भाव मन म रख के मानुस तन ल तार लेव.
जब तक मन म कपट भाव ह रइही.
तब तक बिकास के मारग ह नई दिखय.
अपन मन म ठान के चलिहा. तभे कुछु बात ह बनिही.
आवव जम्मो संगी अउ संगवारी मन.
आज हमन संकलप लेबो.
सुंता अउ परेम ल रहिबो ए संसार म.
तभे कुछु बड़का अउ सुग्घर करम कर सकबो.
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हरेली
रचनाकार- सोमेश देवांगन
आगे आगे ये दे हरेली तिहार.
रिमझीम पानी के परत फुहार..
चारो मुड़ा लागे हरियर हरियर.
तरोइ फूल दिखय पियर पियर..
खेती खार के होवत हे श्रृंगार.
नांगर कुदरी रापा धो के तियार..
चीला रोटी लाई धर खेत जाबो.
पूजा पाठ करके तिहार मनाबो..
घर के देवी देतवा ला मनाबो.
सक्ति अनुसार परसाद चढ़ाबो..
मांगबो भगवान ले हाँथ ल जोर.
सबके बाढ़य लक्ष्मी चारो ओर..
नीम के डारा ला घर मा खोचबो.
बीमारी ला घर आय ले रोकबो..
बॉस के सुघ्घर सब गेड़ी बनाबो .
रापा कुदरी संग गेड़ी पूजा कराबो..
रेच रेच चढ़ के मजा ला उड़ाबो.
चिखला पानी सब मा हम चलाबो..
संझा के बेरा नरीयर ला फेखबो.
हार जीत के खेल ला देखबो..
सब मिलजुल के हँसबो हँसाबो.
हरेली तिहार ला कूद कूद मनाबो..
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अंगना मा शिक्षा
रचनाकार- सुधारानी शर्मा
अंगना मा शिक्षा, बगरे हवय ओ..
चलव दीदी, दाई, बहिनी, जतन करलव.
जोड़ना, घटाना, चित्र, कविता, कहानी,
खेती, साग भाजी, संग गोठ आनी बानी,
लइका ला सीखो पढो के,
जीवन ला धन्य कर लो.
चलव दीदी, दाई, बहिनी जतन करलव,
अंगना मा शिक्षा बगरे हवय ओ,
चलव दीदी, दाई, बहिनी, जतन कर लव.
आखर के थरहा, अऊ अंक के ज्ञान,
येखर महत्ता समझव, लइका अऊ सियान,
घर कुरिया मा हवय ग्यान के खजाना,
राधत, खावत, खेलत, ओला लइका ला समझाना,
विद्या दान देके, जीवन सफल कर लो,
चलव दीदी, दाई, बहिनी, जतन करलव.
अंगना मा शिक्षा बगरे हवे वो,
चलव दीदी दाई बहिनी जतन कर लो.
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