लेख

सफल होने का मूलमंत्र

रचनाकार- सोमेश देवांगन

SUCCESS

इंसान को अगर हर जगह सफल होना है तो उसे इन तीन बातों का ध्यान रखना होगा. वे मुख्य तीन बातें, जिसको मैंने हमेशा अपने साथ रखा और आगे बढ़ा. वे मुख्य तीन बातें ख्वाहिश, यकीन और उम्मीद हैं. यदि इन तीन बातों को हमेशा अपने पास रखें तो किसी भी कार्य में सफल होने से हमें कोई नहीं रोक सकता.

ख्वाहिश- अगर हमने किसी भी कार्य को करने की दिल से ख्वाहिश की हो और किसी भी कीमत पर अपने ख्वाहिश को पूरा करना हो तो कोई भी ताकत हमारे ख्वाहिश को पूरा करने से, उस कार्य को पूरा करने से रोक नहीं सकता.

यकीन- हमें यकीन रखना होगा और करना होगा कि हम जो कर रहे हैं,सही कर रहे हैं.किसी के बहकावे में आ कर अपना कार्य अधूरा नहीं छोड़ना है और यकीन रखना है अपने ऊपर कि जो हो रहा है, सही हो रहा है.

उम्मीद-जब कोई कार्य करना है और उसे सिद्ध भी करना है तो हमें हमेशा अपने से ही उम्मीद करना है कि हर कार्य मैं कर सकता हूँ. चाहे कोई भी मुसीबत आये, उसे मैं कर सकता हूँ और मेरा काम पूर्ण रूप से सिद्ध भी होगा. बिना किसी रुकावट के यही उम्मीद अपने से करते हैं तो पूर्ण रूप से हर कार्य में हमें सफलता मिलेगी.



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पंछियों की दुनिया

रचनाकार- विभा सोनी

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बच्चों आप सभी ने अपने आस-पास बहुत सारे पक्षियों को देखा होगा, लेकिन इनके बारे में ज्यादा नही पता होगा, तो मैं आप सभी को इस संबंध में कुछ जानकारी दूँगी. पँख वाले, या उड़ने वाले किसी भी जंतु को हम पक्षी कहते हैं‌. इनका शरीर पँखों से ढका होता है. सभी प्राणियों में पक्षी सबसे सुंदर एवं आकर्षक होते है. पक्षियों की दुनिया बहुत ही निराली है. भारत में पक्षियों की लगभग 1200 प्रजातियां पायी जाती है. क्या आपको पता है, हर साल कितने सारे पक्षी प्रदूषण के कारण अपनी जान गवां रहे हैं.

हमारे देश में इतने सुंदर, रंग-बिरंगी पक्षी है जिन्हें देखकर हमारा मन आनंदित होता है. पक्षियों का पोषण व संरक्षण हमारा कर्तव्य है, सभी को उसके लिए जागरूक रहना चाहिए. पक्षियों को बचाने के लिए हमें अपने घर के पास के पेड़ में बर्तन लटकाकर दाना रखना चाहिए. अपने आसपास पेड़ पौधे लगाएं. पर्यावरण को सुरक्षित कर पक्षियों की भी जान बचाने का संकल्प लें.

चिड़िया कहती एक ही पुकार मुझे बचाओ

मेरा ना करो संहार

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पेड़ हमारे दोस्त

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टिंकू नाम का एक छोटा बच्चा था. वह हमेशा टीवी में कार्टून या मोबाइल में कार्टून देखता रहता था. पापा-मम्मी के बहुत समझाने के बाद भी टिंकू घर के अंदर ही टीवी में कार्टून देखता रहता था. एक दिन स्कूल में टिंकू की शिक्षिका ने पेड़ हमारे दोस्त नामक पाठ पढ़ाया, जिसमें टिंकू को पेड़ों के महत्व की जानकारी मिली कि पेड़ हमारे लिए कितने उपयोगी हैं?

पेड़ों की वजह से हमें ऑक्सीजन मिलता है, पेड़ों की वजह से बारिश होती है, गर्मी के समय में पेड़ों के नीचे कई लोग बैठ कर आराम कर सकते हैं. पेड़ों में कई पक्षियों के घोंसले होते हैं, रात के समय पक्षी आकर वहाँ रहते हैं, पेड़ों में कई प्रकार के पक्षी निवास करते हैं. पेड़ों की जड़ों के कारण मिट्टी का जमाव होता है. शिक्षिका ने बहुत ही अच्छे ढंग से पेड़ों के महत्व के बारे में बच्चों को बताया और सभी बच्चों से कहा क्या आपके घर के पास भी पेड़ हैं? क्या आप कभी अपने उस पेड़ के पास जाकर खेलते हैं? टिंकू ने सोचा कि हाँ, मेरे घर के पास भी एक बड़ा-सा आम का पेड़ है लेकिन मैं वहां कभी नहीं गया. फिर टिंकू ने तय किया कि मैं उस आम के पेड़ के पास जरूर जाऊंगा और जब टिंकू वहाँ गया तो उसने देखा कि आम के पेड़ के पास एक छोटा-सा कुत्ता बैठा हुआ था और पेड़ में बहुत सारे पक्षी थे. उनकी आवाज बहुत अच्छी लग रही थी और एक छोटी गिलहरी भी पेड़ में यहाँ से वहाँ कूद रही थी. अब टिंकू रोज स्कूल से आने के बाद घर में कार्टून नहीं, बल्कि उस पेड़ के नीचे जाकर खेलता था, कुछ पढ़ता था. उसे देखकर टिंकू के दोस्त मोना, विजय, लक्की, रुचि, गोल्डी भी रोज खेलने को आते थे और सभी बच्चे बहुत मजे करते थे. पेड़ में विजय और गोल्डी ने मिलकर एक मचान भी बनाया था, जहाँ वे ऊपर बैठ जाया करते थे और चिड़ियों, पक्षियों को बहुत पास से देखते थे. पक्षियों के लिए छोटे-छोटे घर भी बनाए थे. वहीं गिलहरी एक डाल से दूसरे डाल में घूमती रहती थी, रंग बिरंगी तितलियाँ आती थी. मोना, लक्की, रुचि पेड़ में चढ़कर छलांग लगाते रहते थे. विजय ने एक टायर से झूला भी बनाया था जिसमें सभी बच्चे झूला झूला करते थे और टिंकू नीचे बैठकर कहानी सुनाता था और सभी बच्चे पेड़ों के चारों तरफ खेलते हुए कहानी का आनंद लेते थे. कभी-कभी स्कूल का होमवर्क भी साथ मिलकर खेल-खेल में पूर्ण कर लेते थे.

टिंकू के मम्मी, पापा और सभी बच्चों के मम्मी पापा बहुत खुश हैं कि बच्चों ने पेड़ों के महत्व को समझा और प्रकृति के महत्व को जाना है.

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गेड़ी

रचनाकार- द्रोणकुमार सार्वा

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आज बिहनिया ले गोलू के मन उछाह ले भर गे रहिस. बबा के संग नांगर-बखड़,कुदारी,रापा ल धो के घर म हरेली तिहार के पूजा पाठ के तैयारी म लगे रहिस. परोसी लईका मन के हाथ म गेड़ी ल देख नान-नान दु ठन लउठी ल धर के बबा तीर गेड़ी बनाये बर जिद करे लगिस.

ननपन म लईका मन के मन जल्दी संगी सँगवारी अउ खेल कूद डाहर खिंचा जाथे. गोलू के बात ल बबा भला कइसे टालतिस वो तो बबा के मयारुक संगी रहिस. 'बुढापा ननपन के डहर मनखे के ढलत बेरा आय. घर के कतको कड़ा सुभाव के मनखे घला नाती-नतनीन बर खेलउना कस बन जाथे. '

बबा ह बॉस के दु ठन लउठी ल लेके गेड़ी बनाये के चालू करीन. गोलू के मन में गेड़ी ल देख सवाल के ज्वार उमड़त रहिस. बबा ले पूछत कहिथे:-

बबा हरेली बर गेड़ी काबर बनाथे.

बबा बताइस बाबू ये हमर पुरखा ले चले आवत हे. आघु गली खोर मन म माड़ी-माड़ी चिखला रहय ल इही गेड़ी म चढ़ के हमन ननपन म चउमास म घुमन.

बबा गोलू ल बतावत कहिस रापा,कुदारी,नांगर-बखड़, गऊ धन ये सब ह खेती म हमर मन के सहायता करथे तेकर सेती हमन इकर पूजा करके इकर उपकार ल मानत माटी महतारी ले बने फसल बर कामना करथन.

बबा बताइस गउधन ल गहूं के पिसान म जड़ी मिलाके लोंदी बनाके खवाय ले उकर स्वास्थ्य ह बने रइथे.

नाती बूढा के गोठ बात होवत रहिस अइसने घर के मोहाटी म बईगा ह लीम के डारा ख़ोचीस. बबा गोलू ल बताथे. लीम के रुख ह बड़ गुणकारी आवय एकर जर ले लेके पाना ह रोग राई म काम आथे अउ घर म ठंडकता अउ सफाई म बड़ सहायक होथे.

चौमास म जुड़ -बुखार,रोग -राई ले बचे बर हमर तीर-तखार के सफाई जरूरी हवय. ए परब हमन ल इहि सन्देश देथय.

बबा रुख-राई हमन के कतिक काम आथे बबा फेर सब मन एला काबर काटथे? गोलू के प्रश्न म पर्यावरण के पीड़ा रहिस.

आज के मनखे अपन सुवारत म भुलागे हे बेटा -बबा कहिस.

बेटा इहि रुख-राई ह बादर ल अपन तीर खींच के बरसा कराथे. अब सावन भादो म पानी नई गिरत हवय एकरे तो नतीजा आय.

हमर जिनगी ये माटी महतारी, रुख-राई अउ पर्यावरण के बिरले नई हे.

हरियर धरती के सुवागत अउ धरती ल हरियर राखे बार हमन ल सन्देस दे बर त ये हरेली तिहार हमर पुरखा मन मनावत आहे.

बबा के बात सुनत गोलू माटी महतारी अउ पर्यावरण के सुरक्षा बर मने मन सोचत रहिस. गेड़ी बन गे. पूजा पाठ करे के बाद नाती-बूढा आमा के पेड़ लगाइस.

फेर गुरहा चीला, चौसेला, सोहारी,बरा,गुलगुला भजिया के सुवाद लेके गेड़ी चढ़े के मजा लीन.



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शालिनी

रचनाकार- प्रीतम कुमार साहू

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मजदूरी का काम करने वाले मोहन और मीरा की छ: बिटिया थी. मोहन की चाह थी कि एक बेटा हो.

मीरा जब सातवीं बार गर्भ में थी,तब पता चला की आने वाले संतान बिटिया ही है. मोहन मीरा की गर्भपात कराने की सोचता है किन्तु मीरा इसके लिए सहमत नहीं होती और एक सुंदर सी बिटिया को जन्म देती है.

बिटिया का नाम शालिनी रखते हैं. शालिनी को बचपन से ही खेलने कूदने का शौक था. स्कूल के दिनों में शालिनी सभी खेलो में भाग लेती और जीत भी हासिल करती किन्तु उसे दौड़ का खेल बहुत अच्छा लगता था.

शालिनी का बचपन से सपना था कि दौड़ के खेल में मेडल जीतकर अपने और अपने देश का नाम रोशन करे.

अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए दिन में स्कूल जाती और सुबह-शाम दौड़ की तैयारी करती.

शालिनी स्कूल स्तरीय से जिला स्तरीय और जिला स्तरीय से राज्य स्तरीय खेलो में जीत हासिल कर आगे बढ़ने लगी. अब शालिनी दिन रात खेल के बारे में सोचती रहती और खेल की तैयारी में लगी रहती, मानो उसके लिए खेल ही सब कुछ था. लंदन में ओलंपिक खेलों का आयोजन होने वाला था. ऐसे में शालिनी अपनी दौड़ की तैयारी करने के लिए शहर जाने की सोचती है.

अगली सुबह शालिनी रेलवे स्टेशन में रेल आने का इंतजार कर रही थी. तभी रेल की आवाज सुनाई दी और लोगों की भिड़ जुटने लगी. भीड़ में फंसी शालिनी रेल में चढ़ने की कोशिश कर रही थी तभी रेल छूटने की आवाज सुनाई दी. रेल में चढ़ने के लिए लोगों में खुब धक्का-मुक्की होने लगी और इसी धक्का-मुक्की में शालिनी रेल के नीचे आ गिरी और उसका एक पैर कट गया.

शालिनी को जब होश आया तब वह अस्पताल में थी और अपने कटे हुए पैर देख खूब रोई और चिल्लाने लगी. शालिनी का सपना अब मानो टूट-सा गया था. किन्तु शालिनी अभी भी हार नहीं मानी थी. उसे विश्वास था कि वह एक दिन अपने सपने को जरूर पूरा करेगी.

अब शालिनी शहर से गाँव आकर अपने घर में रहने लगती है. एक दिन उनकी मुलाकात गॉंव के मास्टर जी प्रीतम साहू से होती है. शालिनी के कटे हुए पैर देख मास्टर जी को बहुत दुख हुआ किन्तु शालिनी के साहस और विश्वास को देख मास्टर जी गौरवान्वित भी हुए.

मास्टर जी शालिनी के पैर का इलाज कराने शहर ले गए. डॉक्टर ने शालिनी के पैर का इलाज कर कटे हुए पैर पर नकली पैर लगा दिया. शालिनी अपने दोनों पैरों से चलने लगी और धीरे-धीरे दौड़ने का अभ्यास करने लगी. लगातार अभ्यास और साहस के बल पर शालिनी पहले की तरह तेज रफ्तार दौड़ने लगी.

अब शालिनी ने टोक्यो में होने वाले पैरा ओलंपिक 100 मीटर दौड़ में हिस्सा लिया और प्रथम स्थान हासिल कर अपना सपना पूरा किया और अपने माँ-बाप तथा अपने देश का नाम रोशन किया.


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रट्टू तोता

रचनाकार- के.शारदा

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राम कक्षा सातवीं का छात्र है. वह हमेशा खेलते रहता है. पढ़ाई करना उसे उतना पसंद नहीं है. बस परीक्षा के समय वह पढ़ता है. माँ उससे कहती है बेटा पढ़ाई कर ले अभी नहीं पड़ेगा तो एक परीक्षा के समय कैसे पूरा सिलेबस को पूरा कर पाएगा. पर वह माँ की सुनता भी नहीं है.

देखते ही देखते परीक्षा का दिन पास आ गया. कल परीक्षा है, तो राम अब सुबह से पढ़ने लगा. माँ बोली बेटा जा कुछ खा ले, मुझे बहुत सारा पढ़ना है मुझे पढ़ने दो. साल भर तो तुम पढ़ते नहीं हो, और अब सुबह से रटे जा रहे हो. समझ कर पढ़ना चाहिए. पर राम माँ की एक ही बात ना सुन कर रट रट के पढ़ने लगा, भारत की राजधानी नई दिल्ली, भारत की राजधानी नई दिल्ली, सबसे बड़ा महासागर प्रशांत महासागर, सबसे बड़ा महासागर प्रशांत महासागर, इस प्रकार भारत के पढ़ने लगा.

परीक्षा का दिन आ गया. राम परीक्षा देने गया. प्रश्न पत्र देख कर उसे लगा मैंने जो पढ़ा वही प्रश्न आया है. हो गई वह घर घर चला गया. माँ ने राम से पूछा बेटा अपना प्रश्न पत्र दिखाओ. बेटे ने माँ को प्रश्न पत्र दिया. प्रश्नपत्र में से माँ ने प्रश्न पूछे भारत की राजधानी क्या है ? राम ने उत्तर दिया कोलकाता. सबसे बड़ा महासागर कौन सा है? राम ने उत्तर दिया एशिया. माँ ने कहा तुमने सारे प्रश्न के उत्तर गलत दिए हैं, इसलिए मैं कहती हूं कि रट रट के मत पढ़ा करो समझ के पढ़ा करो. राम को अपनी गलती का एहसास हुआ. बच्चों हमें इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि - हमें कभी भी रट्टू तोता नहीं बनना चाहिए. किसी भी चीज को समझ कर पढ़ना चाहिए. हमें प्रतिदिन पढ़ाई करनी चाहिए.



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धैर्य और हिम्मत

रचनाकार- वंदिता शर्मा

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बहुत समय पहले की बात है छत्तीसगढ़ में एक गौंटिया रहते थे. गौंटियाके तीन पुत्र थे, एक दिन गौंटिया के मन में आया कि पुत्रों को कुछ ऐसी शिक्षा दी जाये कि समय आने पर वो वो अपने परिवार को सम्भाल सकें.

इसी विचार के साथ गौटिया ने सभी पुत्रों को अपने पास में बुलाया और बोला, 'पुत्रों, हमारे बग़ीचे में सेब का कोई वृक्ष नहीं है, मैं चाहता हूँ तुम सब चार-चार महीने के अंतराल पर इस वृक्ष की तलाश में जाओ और पता लगाओ कि वो कैसा होता है ?

गौंटिया की आज्ञा पाकर तीनों पुत्र बारी-बारी से गए और वापस लौट आये.

सभी पुत्रों के लौट आने पर गौंटिया ने पुनः सभी को अपने पास में बुलाया और उस पेड़ के बारे में बताने को कहा.

पहला पुत्र बोला, 'पिताजी वह पेड़ तो बिलकुल टेढ़ा – मेढ़ा, और सूखा हुआ था.'

'नहीं-नहीं वो तो बिलकुल हरा–भरा था, लेकिन शायद उसमे कुछ कमी थी क्योंकि उस पर एक भी फल नहीं लगा था.' दुसरे पुत्र ने पहले को बीच में ही रोकते हुए कहा -

फिर तीसरा पुत्र बोला, 'भैया, लगता है आप भी कोई गलत पेड़ देख आये क्योंकि मैंने सचमुच सेब का पेड़ देखा, वो बहुत ही शानदार था और फलों से लदा पड़ा था.'

और तीनो पुत्र अपनी-अपनी बात को लेकर आपस में विवाद करने लगे.

तभी गौंटिया उठे और बोले, 'पुत्रों, तुम्हे आपस में बहस करने की कोई आवश्यकता नहीं है, दरअसल तुम तीनो ही वृक्ष का सही वर्णन कर रहे हो. मैंने जानबूझ कर तुम्हे अलग-अलग मौसम में वृक्ष खोजने भेजा था और तुमने जो देखा वो उस मौसम के अनुसार था.

मैं चाहता हूँ कि इस अनुभव के आधार पर तुम तीन बातों को गाँठ बाँध लो :

पहली बात, किसी चीज के बारे में सही और पूर्ण जानकारी चाहिए तो तुम्हे उसे लम्बे समय तक देखना-परखना चाहिए. फिर चाहे वो कोई व्यवसाय, विषय, वस्तु हो या फिर कोई व्यक्ति ही क्यों न हो.

दूसरी, हर मौसम एक सा नहीं होता, जिस प्रकार वृक्ष मौसम के अनुसार सूखता,

दूसरी बात उस जगह की प्रकृति व जमीन और वहां की मिट्टी पर भी निर्भर रहता है वृक्षों का जीवन की किस प्रकार वह हरा-भरा या फलों से लदा रहता है उसी प्रकार कारोबार तथा मनुष्य के जीवन में भी उतार चढाव आते रहते हैं, अतः अगर तुम कभी भी बुरे दौर से गुजर रहे हो तो अपनी हिम्मत और धैर्य बनाये रखो, समय अवश्य बदलता है.

और तीसरी बात, कभी भी झूठ का सहारा न लो अपनी बात को ही सही मान कर उस पर अड़े मत रहो, अपना दिमाग खोलो, और दूसरों के विचारों को भी जानो.



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NEP पर विशेष चर्चा

रचनाकार- लोकेश्वरी कश्यप

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क्रिटिकल थिंकिंग के अंतर्गत लॉजिकल थिंकिंग पर प्रश्न सामने आने से बहुत सारी बातें स्पष्ट हो जाएगी. किसी भी मुद्दे पर पूर्ण जानकारी रखना और उसके प्लस पॉइंट एवं माइनस पॉइंट को ध्यान में रखकर अर्थात उस विषय के सकारात्मक और नकारात्मक स्वरूप को देख पाने की क्षमता एवं सोच समझकर तर्कपूर्ण चिंतन करते हुए उसे सही रूप देना ही लॉजिकल थिंकिंग हैं. लॉजिकल थिंकिंग को स्पष्ट करने के लिए वर्तमान काल के प्रासंगिक मुद्दे पर बात की गई.

लेकिन की पर्याप्त आपूर्ति क्यों नहीं हो पा रही है इसके क्या कारण है क्या अपने देश में वैक्सीन उपलब्ध कराना सरकार का नैतिक कर्तव्य नहीं है. दूसरे देशों को वैक्सीन उपलब्ध करवाने से पहले अपने देश के बारे में सोचना सरकार का कर्तव्य नहीं था. ऐसे सवालों के जवाब व्यक्ति विशेष पर निर्भर करते हैं. और इसका आधार होता है स्वयं को सामने रखकर किसी समस्या को देख पाने की क्षमता. इसे हम व्यक्तिगत नजरिया कह सकते हैं. यह जरूरी नहीं कि सभी व्यक्ति का जवाब सही हो. हर व्यक्ति का अपना नजरिया होता है और उसका नजरिया उसकी आवश्यकताओं से प्रभावित होती हैं. ऐसी स्थिति परिस्थिति में हमें चैन से ऊपर उठकर सोचने समझने और तर्कपूर्ण भी चिंतन करने की आवश्यकता होती हैं. जैसे कि इसी मुद्दे को अगर हम एक छोटे से देश भूटान जो कि काफी गरीब माना जाता है उसके नजरिए से देखें तो स्थिति कुछ अलग होगी. भूटान वैक्सीन खरीदने की स्थिति में नहीं थे और उन्हें एक्टिंग की नितांत आवश्यकता थी ऐसे समय में भारत द्वारा उन्हें वैक्सीन उपलब्ध करवाया जाना उनके लिए डूबते को तिनके का सहारा साबित हुई. और यह फैसला उस समय लिया जब भारत के लोगों में वैक्सीनेशन एवं व्यक्ति के प्रति काफी नकारात्मक रवैया देखने को मिल रहा था कहने का तात्पर्य है कि काफी ब्राह्मण की स्थितियां यहां पर थी. तो उस समय के हिसाब से वैक्सीन का सही इस्तेमाल हुआ साथ ही इससे देशों के बीच सौहार्द्र की भावना और सहयोग की भावना का एक सकारात्मक पक्ष का निर्माण हुआ. अब चुकी सभी लोग वैक्सीनेशन के लिए अवेयर हो चुके हैं यहां तो सरकार यहां पूर्व प्राथमिकता के साथ वैक्सीनेशन के लिए कटिबद्ध नजर आती है.

इस मुद्दे पर हम क्रिटिकल, लॉजिकल थिंकिंग का बहुत अच्छा उदाहरण देखने को मिलता है.

क्रिटिकल थिंकिंग के पांच भागों की बात की गई जों क्रिटिकल थिंकिंग के आधार हैं.

👉 विषय या समस्या का पूर्व ज्ञान.

👉 वैचारिक स्वतंत्रता

👉 किसी भी तथ्य के सही और गलत पक्ष को देख पाने का दृष्टिकोण.

👉 स्तरीय चिंतन अर्थात इस स्तर पर चिंतन कर पाते हैं

👉 दृष्टिकोण अर्थात देखने व समझने का नजरिया.

क्रिटिकल थिंकिंग के लिए उस विषय का पूरा ज्ञान एवं पूर्व ज्ञान होना अति आवश्यक पहलू है.

NEP के प्रमुख भाग

👉 स्कूली शिक्षा

स्कूली शिक्षा व्यवस्था को 3 से 18 वर्ष के सभी बच्चों के लिए पाठ्यचर्या और शिक्षण शास्त्र के आधार पर डिजाइन किया गया है. जिसे की 5+3+3+4 के रूप में परिभाषित किया गया है.

👉 प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा(ECCE) :-इस व्यवस्था में पांच जो है वह 3 वर्ष पूर्व प्राथमिक अर्थात बाल वाटिका के साथ प्राथमिक स्तर के 2 कक्षाओं को सम्मिलित किया गया है. इससे पूर्व बाल वाटिका या आंगनबाड़ी केंद्रों की शिक्षा अनौपचारिक माना जाता रहा है. अब इसे औपचारिक रूप से प्राथमिक के दो कक्षा के साथ मिलाकर देखने समझने और कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है. इस अवस्था में 3 वर्ष के बच्चों को शामिल कर प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की एक मजबूत बुनियाद को भी शामिल किया जा रहा है जिसे की ईसीसीई अर्थात अर्ली चाइल्डहुड केयर एजुकेशन कहां गया है. 3 से 6 वर्ष के बच्चों को औपचारिक शिक्षा से जोड़ने के पीछे सिद्धांत यह है कि मनोविज्ञान एवं मस्तिष्क विज्ञान के अनुसार 3 से 6 वर्ष के बच्चों में मस्तिष्क का 80 से 85% विकास हो चुका होता है. इस दौरान मस्तिष्क के न्यूरॉन्स का विकास तेज गति से होता है एवं इस स्तर पर संज्ञानात्मक भाषाई व गणिती अवधारणाओं को समझने के विकास की गति अत्यंत तीव्र होती हैं. अतः यह महत्वपूर्ण स्तर होता है जब बच्चों को विभिन्न अवधारणाओं को सीखने समझने और उसे अनुभव करके सीखने के अवसर दिए जाए तो उनका सर्वांगीण विकास बहुत अच्छे से होता है. अतः 3 से 6 वर्ष के बच्चों को प्राथमिक बच्चों के साथ मिलाकर औपचारिक शिक्षा दी जाने की प्रावधान कीया गया है. 3,6 वर्ष की उम्र में बच्चों को सीखने के समुचित सुखद वातावरण उपलब्ध हो इसके लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष है.



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अंश

रचनाकार- अरुण यादव

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कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौर में लॉकडाउन का लगना निम्न वर्गों और मजदूरों के लिए तो काल साबित हो रहा था.

खाने–पीने की वस्तुओं और सब्जियों के दाम तो सातवें आसमान पर थे.

गाँवों में तो लोगों के मरने की नौबत आ गई थी,राशन की दुकानों में ज्यादा से ज्यादा गेहूं और चावल मिल जाता था.

यह दृश्य देखकर 10 वर्ष के छोटे से बच्चे का दिल पसीज उठता, एक दिन दिन अपनी गुल्लक तोड़ी और सारे पैसे गिने लेकिन उसमें लगभग सात हजार रूपए ही निकले लेकिन इससे वो आखिर कितने लोगों की और कितने दिनों तक मदद कर सकता था?

फिर भी उसने सोचा जब तक होगा तब तक इन पैसों से जरूरतमंद लोगों को मदद करता रहेगा.

एक दिन उसके मन में एक अद्भुत विचार आया जिससे वो बहुत खुश हुआ.

उसने गाँव के उन–उन स्थानों को चुना जहां अब कोई नहीं रहता था जो खंडहर हो चुके थे.

उसने उन स्थानों की साफ–सफाई की और मिट्टी डालकर भिन्न–भिन्न प्रकार की सब्जियों के बीज बो दिए और नित्य उनकी देखरेख में लग गया.

कुछ दिनों बाद सब्जियों के बेल बड़ी हुई उनमें फूल आए और छोटे–छोटे बच्चे भी लगने लगे और इस प्रकार भिन्न–भिन्न प्रकार की डेढ़ सारी सब्जियाँ तैयार होने लगी और वो जरूरतमंद लोगों तक सब्जियाँ पहुंचाने लगा.

उसका ये अद्भुत कार्य देखकर गाँव के अन्य बच्चे यहां तक कि बड़े भी उसके सहयोग के लिए आने लगे और काम में हाथ बटाने लगे.

इससे वो छोटा सा बच्चा उन गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करने में कामयाब हो सका.



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