छत्तीसगढ़ी बालगीत
गाँव के सुरता
रचनाकार- तुलस चंद्राकर
मया-पिरित के धार बोहावत
घेरी- बेरी गोहरांव रे.
गुरतुर बोली -भाखा जेखर
अब्बड़ सिधवा मैं गाँव रे.
मोर चिन्हारी धुर्रा-माटी,
चिखला, छानही - परवा हे.
डोली - धनहा, मुही- पार अउ,
तरिया, डबरा, नरवा हे.
अंतस ल जुड़वाथे जिहां,
रुखराई के छांव रे.
गुरतुर बोली - भाखा जेखर,
अबड़ सिधवा मैं गाँव रे.
मोर अंगना म अटकन - बटकन
रेंहचुल, भंवरा- बांटी हे,
गिल्ली- डंडा फूगड़ी म
लइकन अड़बड़ खांटी हे.
बरसत पानी के रगड़ म,
जिहां बोहाथे नाव रे.
गुरतुर बोली - भाखा जेखर,
अबड़ सिधवा मैं गाँव रे.
होत बिहनिया चले नगरिहा,
जांगर टोर कमावत हे.
खेत में चटनी -बासी के संग,
ज़िनगी ल अपन चलावत हे.
धरती दाई के जतन करइया,
जेखर पखारंव पांव रे.
गुरतुर बोली -भाखा जेखर,
अब्बड़ सिधवा मैं गाँव रे.
मोर कुरिया म किसम-किसम के
तिहार बार मनावत हें.
ठेठरी- खुरमी, बरा- सोंहारी
खावत अउ खवावत हें.
कोरा हे मोर सरग बरोबर
लेथे दुनिया नाव रे.
गुरतुर बोली -भाखा जेखर
अब्बड़ सिधवा मैं गाँव रे.
निबल - पातर मनखे के संग
हावय मोर मितानी.
खोरबहरा अउ मंगलू, चैतू
करथे इहां सियानी.
सुरता करके दया - मया के
करथे कउवां कांव रे.
गुरतुर बोली -भाखा जेखर
अब्बड़ सिधवा मैं गाँव रे.
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हरियाली
रचनाकार- वीरेंद्र कुमार
सावन आगे सावन आगे,
बारिश की रिमझिम फुहार आगे.
खुशबू की मिठ बयार आगे
धरती दाई की खुशहाली
चलो मनाबो आज हरियाली.
हरियाली के पावन तिहार
बंधागे गांव गांव के सियार.
सावन अमावस्या हरेली तिहार,
सबो मनाबो खुशियां हजार.
धरती दाई के सेवा बजाबो
सुघ्घर सुघ्घर फसल उगाबो
धरती दाई संग खुशियां मनाबो.
नवा नवा रोटी पीठा संग,
अऊ बोबरा चिला हे
नवा नवा बोली भाखा संग
गुरतुर बोली के चिन्हा हे.
सावन महिना रिमझिम फुहार
धरती दाई करे सिंगार.
चिरई चिरगन नाचे डाली डाली
चलो मनाबो आज हरियाली.
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सिरतोन कहत हव संगी
रचनाकार- लोकेश्वरी कश्यप
कथनी अउ करनी म अंतर देखें हव भारी,
सिरतोन कहत हव संगी नई मारत हव लबारी.
कइथे कुछु करथे कुछु, दुनियाँ के रीत बड भारी,
बस देखावा के दुनियाँ म सब निभावत हे दुनियादारी.
सिरतोन कहत हव संगी नई मारत हव लबारी.
थोरकों लाज नई आवय इनला, नाक बाढ़य इखर नव बिता .
जबान के कीमत का हे जाने बस मोर मैया सीता.
सिरतोन कहत हव संगी नई मारत हव लबारी.
झूठ, फरेब, देखावा,लालच के चीखला म जेन गड़े हे.
अंतस इखर धिक्कारय तको नहीं मुर्दा बन परे हे.
सिरतोन कहत हव संगी नई मारत हव लबारी.
कथनी अउ करनी म अंतर देखें हव भारी.
सिरतोन कहत हव संगी नई मारत हव लबारी.
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मोर मुंगेली के नाव ह
रचनाकार- परवीनबेबी दिवाकर
मोर मुंगेली के नाव ह,
रुख राई के छाँव ह.
मोला निक लागे न,
मोर मुंगेली के गुरतुर बोली.
मोर मुंगेली के सुग्घर बोली,
मोला निक लागे न.
मोर मुंगेली के नाव ह,
रुख राई के छाव ह,
मोला निक लागे.
हरियर हरियर छाये हरियाली,
हरियर खेती खार हावय मोर भाई.
देख के ऐला बढ़ नीक लागे न,
मोर मुंगेली के नाव ह.
रुख राई के छाव ह,
मोला निक लागे न.
मोला सुघर लागे न.
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दाई
रचनाकार- द्रोणकुमार सार्वा
बबलू, गुड्डी, भोलू, मुन्नी,
सब बर मया दुलार ए दाई.
काम बुता सब जतन-रतन ले,
सँवरे घर संसार हे दाई.
रोटी, सब्जी दार भात म,
ममता भरे बघार हे दाई.
सुर म लोरी, परी कहानी,
तोर कोरा भरमार हे दाई.
धर के अँगरी नान्हे पाँव ले,
नपा डरे संसार ल दाई.
भूख पियास छुपा के दुख ला,
खुशी घोरे हर तिहार म दाई.
सुआ अस बाँचत भर डारे,
भाखा के भंडार ल दाई.
तोर असीस हर बार मिले हे,
जिनगी मोर उधार हे दाई .
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बढ़त मनखे के आबादी
रचनाकार- सोमेश देवांगन
बढ़त मनखे के आबादी,
देखव कइसे चारो ओर.
जात पात मा लीपा पोता,
बढ़ावत जनसंख्या घोर.
बढ़ावत जनसंख्या घोर,
सीना जोरी करत हे चोर.
बढ़त हावय जी मंहगाई,
देखव अब दांत निपोर.
दाँत निपोरे अब जी बइठे,
मनखे मन सब अब रोवय.
ए जात मा मनखे बढ़गे,
टुकुर टुकर ओला देखय.
बड़े के परिवार ये मनखे,
लइका ला कुछ न देवय.
पढ़ाय लिखाय ला भुला,
बुता काम मा वोला भेजय.
कमाई हवय जी सौ रुपिया,
खर्चा बाढ़े होंगे दु सौ रुपिया.
रहे बर जगह नई पुरत हे,
बोये पर नई दिखत हे भुंइया.
अपन गलती ला सुधारव,
अब फर्ज ला सब निभावव.
समस्या के होही समाधान,
परिवार नियोजन ल अपनावव.
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छत्तीसगढ़िया के चिन्हारी
रचनाकार- सपना यदु
हमन हरन छत्तीसगढ़िया
बासी चटनी म नून डारके खवईया.
मइनखे पहिरथे धोती कुर्ता,
अउ माई लोगन ह लुगरा.
बेर निकलगे जगावत हावय,
कुकड़ू कु करके कुकरा.
पंथी नाचे, सुआ नाचे
अउ नाचे करमा, ददरिया.
ठेठरी, खुरमी, चीला, फरा खावय
अउ निक लागे गुलगुल भजिया.
तीजा, पोरा, हरेली, भोजली
हमर कतको तिहार.
मया के अब्बड़ गांठ बांधके,
बन जाथे जम्मो चिन्हार.
हल्बी, गोंडी, सरगुजिया, बस्तरिया,
इहे हरय हमर बोली.
पहुंची, अंइठी, सांटी, मुंदरी दाई पहिरे हे, माथ लगै सिंघरौली.
बोहर, चेंच, चुनचुनिया अउ, निक लागे अम्मट भाजी.
कोदो, कुटकी, मड़िया के पेंच अउ, पसहर चऊंर संग खाथे मुनगा भाजी.
अटकन- मटकन, फुगड़ी, लंगडी अउ खेलय गिल्ली डंडा.
करू, केसरवा जिमी कांदा खाथन, निक लागे उसनलो बंडा.
सिधवा सिधवी हवय जम्मो मइनखे मन, का लइका का महतारी.
छल कपट जानय नहीं कोन्हों,
इही हवय छत्तीसगढ़िया के चिन्हारी.
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गुरु नमन
रचनाकार- सपना यदु
ज्ञान के देवैया,
हमर सृजन के रचैया,
हमर चरित्तर के संवरिया,
गोठ बानी के सुधरैय्या,
प्रतिभा के उभरैय्या,
जेहर पार लगावे नैय्या,
जतका तोर बखान करौं सब्बो हवय कम.
दाई ददा ईश्वर ले पहिले गुरु आपला नमन.
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आषाढ़ के सुघ्घर महीना
रचनाकार- कलेश्वर साहू
आषाढ़ के सुघ्घर महीना आये हे,
बरसा ऋतु सबके मन ल भाय हे.
आषाढ़ के महीना बादर घम-घम छाये हे.
किसान के मन ल सुहाए हे,
नँदिया, नरवा, खोंचका, खेत-खार भर जाय,
धरती महतारी के पियास बुझा जाय.
गाँव-गाँव म धान बोअई हो गे हे सुरु,
किसान के मन अड़बड़ होवत हे हरु.
माई लोगन मन लगावत हे धान के रोपा,
मोर मयारू ह बाँधे हे गजरा के खोपा.
बादर ल देख किसान होवत हे मगन,
कोठी टिप टिप ले भर जाही कहत हे मन.
आषाढ़ के सुघ्घर महीना आये हे,
बरसा ऋतु सबके मन ल भाय हे.
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गढ़बो नवा भविष्य
रचनाकार- सपना यदु
गढ़बो नवा छत्तीसगढ़,
गढ़बो नवा छत्तीसगढ़.
लइका मन ल पढ़ाए लिखाए बर,
सुघ्घर बनाबो अपन गढ़.
रद्दा, कुरिया, गली-गली म,
शिक्षा के पाठ पढ़ाबोन.
अज्ञानता के अंधियारी ल भगा के,
ज्ञान के दिया जलाबोन.
कोन किसान, सुनार, लुहार अउ
कोन होथे कलेक्टर.
लईका मन ले जनवा लेबोन
का करथे पुलिस इंस्पेक्टर.
शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर अउ
पायलट ह काय करथे.
लेखक, नर्स अउ पोस्टमैन ह,
झोला म का धरथे.
लइका मन ले जनवा लेबोन,
येमन सब का करथे.
ये सबके हमर जिनगानी म,
अब्बड़ महत्तम रहिथे.
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कैलाश में सावन
रचनाकार- सोमेश देवांगन
लग गय सावन बरसय पानी,
कैलाश मा पानी धार बोहाय.
पार्वती गणपती अउ कार्तिक,
भोले संग गण मन मजा उठाय.
बाबा डम डम डमरु ला बजाय,
रिमझीम रिमझीम पानी गिरय.
नंदी गण सब मिल झुमय गावय,
पानी मा फीज के मजा पावय.
मुसवा मजूर ऐति ओती भागय,
गणपति कार्तिक पीछू जावय.
लड्डू ला धर गपागप खावय,
सुघ्घर मोर कैलाश हा लागय.
भोले भंडारी भांग ला मंगाय,
नंदी जा झटकुन दौड़त लाय.
पार्वती माँ ला पीसे ल काहय,
भांग धतूरा ला पियत जाय.
पानी घलो नजारा ला देखय,
रुक रुक के थोक थोक बरसय.
भोलेबाबा के चरण ल देखय,
चरण पखारे पानी हा तरसय.
ब्रम्हा विषणु नजारा ला देखय,
भोले ला खेलत देख के हँसय.
जेखर चरण मा सँसार ह रहय,
तेन हर पानी मा नाच के खेलय.
लग गय सावन बरसय पानी,
कैलाश मा पानी धार बोहाय.
सब खेलय कुदय नाचय गावय,
भोले संग गण मन मजा उठाय.
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शंकर भोला
रचनाकार- प्रिया देवांगन 'प्रियू'
शंकर भोला औघड़ दानी,
बहे जटा से गंगा रानी.
पांव परे जम्मो नर नारी,
जिनगी के हे संकट हारी.
कानों पहिरे बिच्छी बाला,
गर में बइठे साँप निराला.
डम डम डम डम डमरू बाजे,
बघवा छाला अंग म साजे.
नाम हवै भोला भण्डारी,
येखर महिमा जग मा भारी.
धरती के ये पालन हारी.
करे सदा सब मंगल कारी.
भोला के जे गुण ला गाथे,
सदा खुशी आनंद ल पाथे.
सावन मास बहे जलधारा,
शिव के सबो लगाये नारा.
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सावन के सुवागत हे
रचनाकार- कन्हैया साहू 'अमित'
बादर बदबदावत हे, बरसा बरसावत हे,
अमरित अमावत हे, सावन के सुवागत हे.
गली खोर मा चिखला, नाँगर, भँइसा, बइला,
खेती-खार, मुँहीटार, नसा चढ़गे हे सब ला.
जाँगर ला जगावत हे, करम ला कमावत हे.
अमरित अमावत हे, सावन के सुवागत हे.
चुहय छानी-परवा, छलकै नँदिया-नरवा,
दबकै चिरई-चाँटी, दउड़ै गाय- गरवा.
माटी ममहावत हे, चंदन जइसे लागत हे.
हरियर धरती धानी, सकेलय सुग्घर पानी,
जुच्छा हावय बिन जल ये जग जिनगानी.
भुँईया हा पियास बुझावत हे, छाती ला जुड़ावत हे,
अमरित अमावत हे, सावन के सुवागत हे.
बादर बदबदावत हे, बरसा बरसावत हे.
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गरमी के छुट्टी
रचनाकार- आलोक कुमार शर्मा
गली खोर मा गूंजे किलकारी,
बारी - अंगना मा चुहुर परागे.
ममादाई के कोरा मा ओखर,
नाती नतुरा के टोली आगे.
पूरा गाँव जान - डारिस की
गरमी के छुट्टी के दिन आगे.
अब निकलही बांटी - भौरा,
गिल्ली डंडा आगे - आगे.
लेकिन ये का गजब होगे,
सरी लईका मोबाईल मा भुलागे.
लईका भुलागे आमा अमली,
चौमिन - मैगी के दिन हर आगे.
अटकन - बटकन दही चटाका,
छू - छुवाऊल के खेल नंदागे '
लईका मन के बचपना बुझागे,
मोबाईल के अंजोर मा बचपना सिरागे.
यहा विज्ञान के जुग मा संगी,
ममादाई के कहानी गवांगे '
अईसन नजारा ला देख के
ममादाई के डोकरी आँखी मा आंसू आगे.
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माटी के मुसवा
रचनाकार- सोमेश देवांगन
माटी के मुसवा, तोरे करम जागे हे.
गणपती संग तहू ला, देवता माने हे.
चंदन चोवा लगा, फूल पान चढ़ाय.
खा मिठई कहिके, आघू मा मढ़ाय.
माटी के मुसवा, तोरे करम जागे हे.
गणपती संग तहू ला, देवता माने हे.
हाँथ पाव ला मनखे, जोरत हे भारी.
गणपती देवा के, करे तय रखवारी.
कहे बिगड़े काम बना, मुसवा सवारी.
कहे जियत भर रइबो, तोरे अभारी.
माटी के मुसवा, तोरे करम जागे हे.
गणपती संग तहू ला, देवता माने हे.
माटी के हवस ता, हवय रे तोर मान.
जियत रइते तो, ले देतिस तोर परान.
इही तो मनखे हरय, जेन बदल जाथे.
जियत ल छोड़ के, बेजान ला मनाथे.
माटी के मुसवा, तोरे करम जागे हे.
गणपती संग तहू ला, देवता माने हे.
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पितर पाख
रचनाकार- जितेंद्र सिन्हा
डोकरी दाई बैठे हे तेलई,
परवा ले ताकत हे बिलई.
बिलई बरा ल झाड़ दिही का,
डोकरी दाई मार दिही का.
बरा संग चुरत हे सोहारी,
कलछुल ल धरे हे सुआरी
कुकुर झांकत हे बैठ दुआरी,
अरे कुकुर झाड़ दीही सोहारी.
सोहारी संग चुरत हे गुजिया,
डोकरी दाई तरत हे गुलगुल भजिया.
पितर पाख में चूरे हे मछरी साग,
जुरियाये हे छानही में काग.
कौआ संग पितर मन खाहि प्रसाद,
आगे हे पितर पाख खाबो दार भात.
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