चित्र देख कर कहानी लिखो

पिछले अंक में हमने आपको यह चित्र देख कर कहानी लिखने दी थी –

chitrakhani

हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई हम नीचे प्रदर्शित कर रहे हैं

रजनी शर्मा द्वारा भेजी गई कहानी

वृक्षनरी

आज सोनाधर बहुत खुश था. खेत में गन्ने की फसल लहलहा रही थी. अहा! इससे गुड़ बनेगा गुड़ बेचने से बढ़िया आमदनी होगी. गन्ने की फसल काटने के बाद उसके छोटे-छोटे तनों को खेतों में ही छोड़ दिया जाता है. इन्हीं से तो नई कोपलें फूटती है न.

सोनाधर बहुत मेहनती किसान था. पर उसे अपने खेतों की सिंचाई के लिए बड़ी दूर से पानी लाना पड़ता था. वह कभी-कभी सोचता, कि खेतों के आसपास ही जल स्रोत होता तो कितना अच्छा होता.

सोनाधर प्रतिदिन सुबह-सुबह ही चिड़ियों की चहचहाहट के साथ खेतों में पहुँच जाया करता था. आज जब वह अपने खेतों में पहुँचा तो उसने पिंपलिका पंक्तियां (चीटियों की कतार) देखी. यह साधारण चीटियाँ नहीं थीं. इसे देखकर सोनाधर परेशान होकर इधर-उधर दौड़ने लगा किसने किया? विश्वासघात! यह चींटियाँ तो पल भर में पूरी फसल चट कर जाएँगी. वह रुआँसा हो गया. खेत में जगह-जगह बाम्बियाँ उग आई थीं. उसने अपने आँसू पोंछे और सोचने लगा कि तुरंत ही कुछ ना कुछ किया जाए नहीं तो दो दिन में पूरी फसल यह कीट चट कर जाएँगे.

वह दौड़ा और अपने खेत के बीचों-बीच जगह-जगह गन्ने के रस से भरी हंडिया रखता गया. जब यह हंडिया भर जातीं तो दूर मैदान में जाकर उन्हें उलट देता. देखते ही देखते पिंपलिका पंक्तियों की दिशा उसके खेत से दूसरी ओर जाने लगी. यह कीट वृक्षनरी अर्थात दीमक थे. जो फसलों में पाई जाने वाले शर्करा को चट करने के लिए फसलों के तनों में छेद कर देते हैं. सोनाधर द्वारा गन्ने के रस से भरी हाँडियों की ओर यह कीट आकर्षित होते गए. और फसल से इन चीजों का ध्यान हटता गया. मटकियाँ जब कीटों से भर जाती तो सोनाधर उन्हें दूर जाकर उलट आता था. धीरे-धीरे कीटों से फसल सुरक्षित हो गई.

अगली सुबह खेत में खुशी के आँसू आँखों में लिए सोनाधर भूमि पर बैठा लकड़ी के तिनकों को जमीन पर गाड़ कर कुछ सोचने लगा था. वह आश्चर्य से भर उठा लकड़ी के तिनके भूमि पर आसानी से गड़ते ही जा रहे थे. ऐसा पानी वाली भूमि में ही संभव होता है. और यह क्या लकड़ी के तिनकों पर कुछ कीट चिपके हुए मिले.

यह 'वृक्षनरी' दीमक की बाँबियाँ जल स्रोतों का अच्छा स्रोत होने का संकेत भी बताती हैं. सोनाधर खुशी से झूम उठा. उसके खेतों के बीच पानी का स्रोत है. ईश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली.

आखिर प्रकृति इतनी स्वार्थी तो नहीं होती न? न ही इसके जीव. शर्करा प्रेमी वृक्षनरियों (दीमकों) ने शर्करा से भरी हाँडी का प्रतिदान भूमि में जल का पता बता कर दिया. अब यह पिंपलिका पंक्ति खेतों से दूर जा रही थी. यह वृक्षनरी सोनाधर की आँखों में और खेत की फसल को नीर(जल) से भरकर कहीं और जा रही थी. दूर, बहुत दूर.

सुधारानी शर्मा द्वारा भेजी गई कहानी

टिंकू की शरारत

टिंकू 6 साल का लड़का था, दिनभर शैतानी करता और खेलता कूदता रहता. टिंकू का बड़ा भाई अंकू गंभीर स्वभाव का था परंतु टिंकू का ध्यान शरारतें करने में ज्यादा लगा रहता था. टिंकू के घर में एक छोटा सा बगीचा था, वहाँ पर पानी के छोटे छोटे पोखर बनाकर उनके ऊपर सुंदर छोटा सा फव्वारा भी बना हुआ था, जिससे पानी छन छन कर बाहर आता, और सभी पौधों पर फैल जाता और फिर रिसाइकल होकर उसी जगह पर पहुँच जाता था. बगीचे में छोटे-छोटे पौधों के साथ ही पीपल का एक बड़ा पेड़ भी था. पेड़ पर मधुमक्खियों ने अपना छत्ता बनाया था. बगीचे की घनी छाया और ठंडा वातावरण पाकर मधुमक्खियों ने अपना छत्ता बनाया था. और बड़ी शांति से वहाँ रह रही थीं. एक दिन टिंकू की नजर उस छत्ते पर पड़ी उसने घर आकर मम्मी पापा को यह बात बताई. मम्मी पापा ने कहा,वह मधुमक्खियों का छत्ता है, उसके अंदर शहद है, उन्हें छेड़ा ना जाए तो वे कुछ भी नुकसान नहीं करती हैं. शांति से उन्हें रहने दो. टिंकू ने चुपचाप बात सुन तो ली, पर जब भी वह बगीचे में जाता, एक बार उस छत्ते को जरूर देखता, उसे छत्ते के आसपास मधुमक्खियाँ भी भिनभिनाती हुई नजर आतीं. एक दिन उसे शरारत सूझी, उसने एक बड़ा सा पत्थर उठाकर छत्ते पर दे मारा, पत्थर के प्रहार से छत्ता टूट कर दो भागों में बँट गया. एक टुकडा घर के सामने जाकर गिरा, दूसरा छोटा टुकड़ा छोटे फव्वारे पर गिरा, और पानी मे बहने लगा. कुछ मधुमक्खियाँ पानी में गिर गईं. शहद से लिपटे होने के कारण पानी में तैर नहीं पा रही थीं, वे डूबने लगीं. उन्हें पानी में डूबता देखकर टिंकू अपनी शरारत भूल गया,वह जल्दी से पानी के पास आया और छोटी सी लकड़ी पानी में डालकर मधुमक्खियों को सहारा देकर उन्हें बाहर निकाल दिया. किनारे पर आते ही वो तेजी से उड़ गईं. शरारती टिंकू ने मधुमक्खियों के छत्ते को तोड़कर जो गलती की थी उसे उसने मधुमक्खियों की जान बचाकर ठीक कर लिया और घर आकर मम्मी पापा से क्षमा माँग ली.

संतोष कुमार कौशिक द्वारा भेजी गई कहानी

चींटी और किसान

श्यामू नाम का एक किसान था‌. वह रोज की तरह आज भी नदी किनारे अपने खेत जा रहा था. खेत पहुँचने के पहले श्यामू को नदी पार करनी थी. श्यामू नदी के पास पहुँचा ही था कि उसे बचाओ-बचाओ की आवाज सुनाई दी. रामू ने चारों ओर देखा लेकिन उसे कोई दिखाई नहीं दिया. वह आगे बढ़ा तभी उसकी नजर पानी में चीटियों के झुण्ड पर पड़ी. श्यामू को लगा कि बचाओ-बचाओ की आवाज चीटियों की है. श्यामू ने एक डंडे के सहारे चीटियों को नदी से निकाला.सभी चीटियों को निकालने के पश्चात श्यामू ने चीटियों से पूछा- 'तुम सब कहाँ जा रहे हो और यह नदी पार करने की जरूरत क्यों पड़ गई.' चीटियों की मुखिया रानी चींटी ने बताया- 'किसान भाई! हम सब बहुत परेशान हैं, हमारा घर नदी के उस पार खेत के पास में है. घर पर एक सर्प ने कब्जा कर लिया है. 'वह सर्प कहता है कि यह मेरा घर है, तुम लोग मेरे घर के आस पास आओगे तो सभी को मार डालूँगा उस सर्प के डर से हम लोग नदी के इस पार आए हैं. आप ही बताओ भाई हम सब उस सर्प का मुकाबला कैसे कर सकते हैं? श्यामू ने कहा - कब तक तुम लोग इस तरह भागते रहोगे? फिर घर बनाओगे, उस पर भी कोई कब्जा कर लेगा और तुम्हें परेशान करेगा. तुम सबको डरने की जरूरत नहीं है यदि तुम सब साथ मिलकर सर्प का मुकाबला करोगे तो निश्चित ही तुम्हारी जीत होगी. एकता में बल है. हिम्मत से और साथ मिलकर कार्य करने से बड़े-बड़े काम भी आसान हो जाते हैं. यह कहकर श्यामू ने सभी चीटियों को पुन: नदी के उस पार छोड़ दिया. श्यामू की बातों से प्रेरित होकर रानी चींटी के निर्देशन में अपने घर में सोए हुए सर्प पर एक साथ सभी चीटियों ने हमला कर दिया. सर्प पूरी तरह चीटियों की जाल में फँस गया. सर्प अपनी मृत्यु को निकट देखकर डर गया. उसने सभी चीटियों से क्षमा माँगते हुए कहा- मैं इस घर से निकल जाऊँगा, फिर कभी तुम्हारे घर नहीं आऊँगा और कभी परेशान नहीं करूँगा. रानी चींटी को सर्प पर दया आ गई. उसने अपनी साथी चीटियों से सर्प को एक बार क्षमा करने को कहा. चीटियों ने रानी चींटी के कहने पर सर्प को छोड़ दिया. सर्प अपनी जान बचाकर वहाँ से दूर चला गया. चीटियाँ अपना घर वापस पाकर खुश हो गईं और श्यामू को धन्यवाद दिया जिसकी प्रेरणा से सर्प का मुकाबला किया जा सका हुँ.

अगले अंक की कहानी हेतु चित्र

ckahani

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