अधूरी कहानी पूरी करो

पिछले अंक में हमने आपको यह अधूरी कहानी पूरी करने के लिये दी थी –

ईमानदार वीर बालक

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रमेश बहुत ही प्यारा बालक था. वह कक्षा दूसरी में पढ़ता. रमेश विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस का राष्ट्रीय त्यौहार मनाया जाने वाला था. रमेश बहुत उत्साहित था इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए. रमेश को उसकी कक्षा अध्यापिका ने स्वतंत्रता दिवस की परेड में भाग लेने के लिए बोला था. उसके हर्ष का कोई ठिकाना नहीं था, वह खुशी-खुशी इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तैयारियां करने लगा.

इस कहानी को पूरी कर हमें जो कहानियाँ प्राप्त हुई उन्हें हम प्रदर्शित कर रहे हैं.

संतोष कुमार कौशिक द्वारा पूरी की गई कहानी

रमेश स्वतंत्रता दिवस की परेड में भाग लेने के लिए अपनी स्कूल की यूनिफॉर्म, जूते एव॔ मोजे की स्थिति देख रहा था. शर्ट पैंट और मोजा तो ठीक-ठाक था लेकिन जूता फटा हुआ था. फटे जूते को देखकर वह बहुत दु:खी हो गया क्योंकि जूता पहनने लायक ही नहीं था.रमेश अपने माता-पिता से नए जूते खरीदने के लिए भी नहीं कह सकता था. उसके माता-पिता इतने गरीब थे कि तुरंत नया जूता खरीदने में असमर्थ थे. रमेश की खुशी में कमी न आए यह सोचकर उसके पिताजी ने जूतों की मरम्मत करवाकर पहनने लायक बनवा दिया. स्वतंत्रता दिवस की परेड में रमेश ने भाग लिया था लेकिन उसे डर लग रहा था कि जूता पुनः फट ना जाए. उसकी अध्यापिका ने रमेश को चिंतित देखकर कहा-रमेश बेटा क्या बात है? क्यों चिंतित दिखाई दे रहे हो? सिर नीचा कर रमेश अपनी अध्यापिका से कुछ न कहकर आगे बढ़ गया. तभी अध्यापिका की नजर उसके जूतों पर पड़ी. रमेश के जूतों की हालत देखकर अध्यापिका रमेश की परेशानी समझ गई.

स्वतंत्रता दिवस की परेड पूर्ण होने के पश्चात सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रारंभ हुए. रमेश भी कार्यक्रम में शामिल हुआ था. सभी बच्चों ने कार्यक्रम में अपनी-अपनी प्रस्तुति दी. उपस्थित ग्रामीण, जनप्रतिनिधि एवं अतिथि रमेश की प्रस्तुति देखकर बहुत खुश हुए. इनाम के रूप में नगद राशि भी प्राप्त हुई. रमेश की अध्यापिका ने इनाम में प्राप्त राशि में, कुछ राशि अपनी ओर से मिलाकर रमेश के लिए नये जूते खरीदकर दिए. रमेश अध्यापिका से जूते लेने से मना करने लगा. अध्यापिका ने प्यार से समझाया कि यह जूते, जो इनाम में प्राप्त राशि से लिये गये हैं, तुम्हारी मेहनत का फल हैं. नये जूते पाकर रमेश बहुत खुश हो गया और उसने अपनी अध्यापिका को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया.

यशवंत कुमार चौधरी द्वारा पूरी की गई कहानी

रमेश एक ईमानदार बच्चा था. वह अपनी परेड की तैयारियाँ जोरों से करने लगा. वह नियमित रूप से ईमानदारी के साथ अभ्यास करने लगा तथा उसकी लगन देख लोग काफी उत्साहित थे. रमेश अपने मम्मी के साथ बाज़ार जाकर स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पहले ही जूता, कैप आदि आवश्यक सामग्रियाँ खरीद लिया अगले सुबह रमेश उठ गया और स्नान आदि कार्य पूरा करके परेड हेतु तैयार हो गया जब वह अपने मम्मी के साथ स्कूल की ओर जाने लगा उसने रास्ते में देखा की किसी का पर्स गिरा पड़ा है उसने अपने मम्मी को स्कूटी रोकने कहा और झट से पर्स उठा लिया और खोलकर देखने लगा उसमें एक परिचय पत्र था जिसे देखकर उसने मम्मी को फोन लगाने के लिए बोला तथा उसे अपना परिचय देते हुए बताया कि आपका पर्स हमारे पास है जिसमें आपके पैसे, एटीएम और अन्य दस्तावेज हैं. आप हमारे स्कूल आकर इसे प्राप्त कर लें. सज्जन बहुत खुश हुआ और मन ही मन बच्चे की ईमानदारी से काफी प्रभावित हुआ और झट से स्कूल पहुँच गया. रमेश स्कूल जाकर पूरी घटनाक्रम की जानकारी अपने शिक्षक को दिया और पर्स को सौंप दिया. सज्जन ने पूरी परेड देखी और वीर बच्चे के जुनून को देखा. शीघ्र ही मंच से ऐलान हुआ कि सज्जन आकर अपना पर्स ले लें ईमानदार रमेश के हाथों से. तभी सज्जन मंच पर आए और अपना पर्स प्राप्त किया और उसी पर्स से राशि निकालकर ईमानदार रमेश को पुरस्कृत किया जिससे रमेश काफी खुश हुआ उसकी मम्मी को भी काफी गौरव का एहसास हुआ कि उसका बेटा सही दिशा में आगे बढ़ रहा है एक दिन वह एक काबिल इंसान बनेगा और समाज में अपना और हमारा नाम रोशन करेगा.

अगले अंक के लिए अधूरी कहानी

अमित के गणित शिक्षक

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रजनी अपनी मित्र लीला के घर गई थी. दोनों साथ-साथ बाजार जाने वाले थे. लीला ने रजनी को बताया कि आज ही अमित का रिजल्ट आ गया है. अमित स्कूल से आ जाए फिर चलते हैं. दोनों बैठकर अमित की प्रतीक्षा करने लगे. रजनी ने लीला से मिठाई तैयार रखने को कहा, क्योंकि अमित हमेशा अच्छे नंबरों से पास होता रहा है.

थोड़ी ही देर में अमित स्कूल से आ गया. उसका चेहरा उतरा हुआ था. उसने अपना रिपोर्ट कार्ड माँ को देते हुए कहा कि मैंने आपसे पहले ही गणित की ट्यूशन लगवाने को कहा था.

लीला ने रिपोर्ट कार्ड देखा तो अमित को गणित में केवल 72 अंक मिले थे. लीला बोली कि तुमने तो सारे सवाल ठीक किए थे. तुम्हें कम से कम पंचानवे नंबर मिलने चाहिए थे. रजनी ने लीला से लेकर रिपोर्ट कार्ड देखा. अन्य विषयों में अमित को क्रमशः 86, 80, 88, 82, 90 अंक मिले थे. सबसे कम अंक गणित में मिले थे.

अमित गुस्से व दुख से कहने लगा कि सर बार-बार गणित की ट्यूशन लगवाने कहते थे तथा न लगाने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी देते थे. पर माँ ने ट्यूशन नहीं लगवाई.

लीला ने कहा कि यह तो अंधेरगर्दी है. रजनी ने अमित से बातचीत कर सारी बातों की जानकारी ली.

उसे पता चला कि अमित के गणित शिक्षक मिस्टर पाठक हर बच्चे को ट्यूशन लेने के लिए कहते हैं. अमित के छमाही परीक्षा में छियानबे नंबर आए थे. पाठक सर ने फिर भी उसे ट्यूशन आने के लिए कहा था.

अमित इस स्थिति के लिए अपनी माँ को जिम्मेदार मान रहा था. रजनी ने उसे समझाया कि उसे इस बारे में अपने शिक्षक से बात करनी चाहिए. रजनी ने लीला से कहा कि उसे अगले दिन अमित के स्कूल जाकर पाठक सर से मिलना चाहिए.

यह सुनकर अमित डर गया और उन्हें स्कूल जाने के लिए मना करने लगा.

आगे क्या हुआ होगा, इसके बारे में आप सोचना शुरू करें और इस कहानी को पूरा कर हमें ईमेल से kilolmagazine@gmail.com पर भेज देवें. आपके द्वारा भेजी गयी कहानियों को हम किलोल के अगले अंक में प्रकाशित करेंगे.

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