छत्तीसगढ़ी कहानियाँ

सिक्छित कोन

रचनाकार- कलेश्वर साहू

shikshit kon

आज अक्छर-गियान अउ जादा बुद्धि के सेती मनखे मन जादा ले जादा घमण्डी होवत हे. कहु हमन ला सही सिक्छा रइतिस त घमंड कम होतिस. हमन साधन मन ल अपन उद्देश्य मान के गलती कर बइठथन. आज हमन बिकटकन बिषय मन ल पढ़थन जइसे- भासा, गणित, विज्ञान, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, प्रबंधन, धर्मज्ञान आदि. ये सब्बो ह सिक्छा के साधन आय. एखर ले जिनगी म बेवहारिक या बेवसाय बढ़िया उपजथे. बेवहारिक या बेवसाय ले सुमता उपजथे. सुमता ले झगड़ा-लड़ाई ह मिटा जाथे. झगड़ा-लड़ाई सीरा जाथे तहां ले सब्बो बुता ह बन जाथे. अउ ये सब्बो झगड़ा-लड़ाई ह असिक्छा के सेती होथे.

तइहा के सियान मन कहे हे कि 'विद्या या विमुक्तये'. जउन हमन ला मुकति करहि तउन विद्या आय. मुकति के आशय हे अगियान या असिक्छा ले मुकति. निराश के भाव ले मुकति. बेकार सोच ले मुकति. मनखे मन के एकठक परम लक्ष्य होथे निराश के भाव ले मुकति होके आत्म विकास करना. आनमन के विकास म बिना बाधा बने अपन खुद के विकास करना ही सही सिक्छा आय. लेकिन आजकाली के कुछ मनखे मन पहिली पूछथे का काम- बुता चलत हे फेर धीरे धीरे उंकर काम बुता म झपा जाथे मोर कहे के मतलब हे कि आजकाल कुछ मनखे मन अपन विकास ले जादा दूसर मन के विकास म नजर रखथे अउ उहला बाधा पहुचाय म लग जाथे जउन फेर मोला उचित नइ लागय. बाहरी दुनिया के गियान ह तो सूचना बस ताय. सही गियान तो खुद ल जानथे तउन ल कइथे. जउन खुद ल जानके सही रद्दा म बढ़हत हे उही सही गियानी अउ सही सिक्छित आय. सिक्छा बाहरी ल नइ बल्कि अपन भीतरी ल बदलथे. अब एखर अरथ ये नहीं कि हमन इसकूल, कॉलेज मन ल भूलाजन या पढ़े-लिखें बर छोड़दन. मनखे मन के बाहरी विकास अउ सही सिक्छा पाय के खातिर बर साक्षरता अउ अउपचारिक सिक्छा घलो अड़बड़ जरूरी हे.

गांधी जी ह कहे हे कि लबारी ले सही ल नइ पाय सकय. गांधी जी ह हर बेरा सही साधन मन के शुद्धता बर बल देवय. जउन सिक्छा के उचित गियान के बिना संभव नइ हे. उचित गियान बर सरकार के संगे-संग प्राइवेट संस्था मन ल तको अपन जवाबदारी ल समझ के सही रद्दा म आगु बढ़ना चाही नइ तो ये सब्बो प्रक्रिया ह तमाशा बन के रइजहि.आज समाज म हर जघा छटपटासी बड़गे हे अउ एखरे सेती आज वर्तमान बेरा म सिक्छा म सही मूल्य के कमी हे.



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जुगाली

रचनाकार- पेश्वर यादव

jugali

बहुत पहले की बात है पशुओं को खेती बाड़ी और अन्य काम के लिए पालतू बनाने से पहले ये जंगलों और मैदानों में विचरण करते थे. इनमे से कुछ जानवर हरे भरे घास, हरे पत्तियां को खाते थे जो सीधे और सरल स्वाभाव के होते थे जैसे- गाय, भैंस बकरी, खरगोश, भेंड़, हिरण. ये जो शाकाहारी कहलाते थे. वंही कुछ जानवर मांस भक्षण करने वाले होते थे जो बहुत आक्रामक, खूंखार, खतरनाक एंव भयानक होते थे. जैसे-बाघ, शेर, चीता ये मांसाहारी होते थे. जो चलते फिरते शाकाहारी जीवों को एक साथ शिकार करते थे. जिससे मैदानों एंव जंगलों में इन जानवरों की संख्या दिनों दिन कम होने लगी. ये शाकाहारी जानवर भोजन की तलाश में घास की मैदान और जंगलों में विचरण करते थे जंहा मौका पाकर मांसाहारी जीव उनका शिकार करते थे.

एक दिन इन डरे हुए जानवरों ने इस समस्या से निपटने के लिए अपने बिरादरी (शाकाहारी) की एक सभा बुलाई. जिनमे एक खरगोश ने एक उपाय सोच रखी थी. उन्होंने चिंता जताते हुए वह सबसे पहले बोला- क्यों न इन भयानक जानवरों से बचने के लिए घास और पत्तियों को जल्दी जल्दी निगलकर किसी सुरक्षित स्थान में भाग जाया करेंगे. वंहा पहुंचकर जल्दी जल्दी निगले हुए भोजन को जुगाली करके पचायेंगे. खरगोश की इस बात को सुनकर सभी शाकाहारी जानवरों ने एक स्वर में हामी भरी. उस दिन से सभी शाकाहारी जानवरों ने जुगाली करना शुरू किया. इस प्रकार इन जानवरों में जुगाली करने की आदत विकसित होती गई. तब से घास पत्तियां खाने वाले जंतु जुगाली करते है.


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कुकरी पिला के जान बाहचगे

रचनाकार- सुरेखा नवरत्न

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एक ठन बड़का कुकरी के तीन ठन चियां पिला रहय, तीनों चियां म अब्बड़ मया रहय.दिन भर कोला- बारी म अपन दाई के संग किंदर- किंदर के चरत रहय, अऊ संझऊती होवय त डोकरी दाई के घर के गोड़ा तरी म दुबक के सुते रहय. मियारी कुकरी ह अपन डेना म समेटके तीनों लईका ल पोटार के सुतावय. असने करत- करत चियां मन बने एकक पउवा भर के हो घलिन. मियांरी कुकरी ह ओमन समझाय रहय कि लईका हो तुमन मोर तीरेच म रहे करा जादा दूर झन जाय करा. तभो ल ओमन ओकर महतारी करा ल थोरकन धुरिहा घलो म जाके चरत - बुलत रहय. 

गोड़ई म भियां ल खनय, कोड़ियावय अऊ चोंच म ठोनक- ठोनक के अपन खाय के लईक चरा ल खावत जावय. एक दिन अब्बड़ झोर-झोर के पानी गिरिस, चियां पिला मन घर के कोंटा म सपटे रहय. पानी के गिर के मारे घर निकले बर नई पाय रहय. तीन बजती के बेरा म पानी गिरई ह छोड़िस. कुकरी अऊ ओकर चियां मन कोरकीर - कोरकीर दउड़त चरे बर निकलिन. 

चिखला ल खोदलके किरा- मकोरा मन ल गपागप खावत रहय. तभे सबले नानकन चियां के चोंच म चिखला ह सड़बड़ा गे, चियां ह बन कचरा अउ भियां म चोच ल घसरीच तभो ले नई हिटत रहय. चियां ह अगल- बगल ल देखिस त थोरकन धुरिहा म पानी के धार बोहावत रहय.

चियां ह ओई जगा जाके अपन चोंच ल धोहा कईके गईस.

त पानी के धार थोरकन जादा बढ़गे अऊ चियां ह बोहाय लागिस. चियां ह जोर- जोर से चियोक- चियोक नरियाईस, त ओकर दाई अऊ दूनो अऊ चियां मन दउड़त आईन. चियां ह बोहावत रहय अऊ संगे -संग एहुमन दउड़त जात रहय. एक जगा आघू म पानी के बीच म बड़का पथरा रहय

चियां ह जाके पथरा म अरहज गे. अऊ चियोक- चियोक नरियावत रहय, तीनों लईका अऊ महतारी घलो ओकर सीधा म हबर घलिस, फेर ओला लाने नई सकता रहय. चियां के डेना ह गुदगुद ले भींज गे रहय अऊ जाड़ के मारे लदलदलद कांपत रहय. मियांरी कुकरी ह मने मन म गुनत रहय, का उदीम करके मोर लईका ल बहचावा भगवान् कईके, ओला रोवासी आवत रहय. मियांरी कुकरी बड़ चउतरा रहय, तभे ओकर नजर एक ठन झिटका म परिस, मियांरी ह झट ले अपन चोंच म धरके ओला घिल्लावत पानी के तीर म ले आनिस. तीनों महतारी पिला मन झिटका ल ढकेल के एक कोती ल चियां कोती सीधा रखिन, त धीरे- धीरे चियां ह झिटका के सहारा म पानी ल नाहक के अपन दाई करा आ घलिस. घाम म एक जगा बईठ के डेना ल सुखोईस अऊ चियां के जान बाहच गे, संझा होईस सब झन बड़का दाई के गोड़ाई तरी आ घलिन अऊ तीनों झन  अपन महतारी के डेना ल धरके सुत घलिन. ओ दिन ले चियां मन अपन दाई के तीर- तखार म रहय, चरय, बुलय धुरिहा नई जावय.


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